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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
जिस प्रश्न से तान्या को खिन्नता होती उसे उसके पास रखे पौधे में लगा पोलीग्राफ यन्त्र तुरंत बता देता। इससे यह निष्कर्ष निकला कि पौधों और मनुष्यों की नाड़ी संस्थानों में गहरा संबंध है। पौधा मनुष्य के मन में होने वाली सूक्ष्म प्रतिक्रिया को भी पकड़ लेता है।
उपर्युक्त प्रयोगों से यह तो सिद्ध हो ही गया कि पौधे संवेदनशील हैं अर्थात् सजीव हैं। साथ ही यह भी सिद्ध हो गया कि पौधों की यह संवेदनशीलता कई क्षेत्रों में मनुष्य से भी बढ़कर है। सद्-असद्, भलेबुरे के साधारण से व्यवहार से भी उन्हें मनुष्य से कितना ही गुणा अधिक हर्ष-विषाद और सुख-दुःख होता है।
___एक दिन वेक्स्टर दही के साथ मुरब्बा खा रहा था, तभी उसने देखा कि पास में लगा पौधा गेल्वेनोमीटर पर अपनी खिन्नता प्रकट कर रहा है। खोज करने पर पता चला कि मुरब्बे में मिला रसायन दही की जीवित कोशिकाओं (सूक्ष्म बैक्टिरिया जीवों) को मार रहा था। उसी के कारण पौधे को दुःख हो रहा था। इससे यह प्रमाणित हो गया कि आँख से नहीं दिखाई देने वाले अति सूक्ष्म जीवों में भी संवेदनशीलता है अर्थात् वे सजीव हैं और उनके मरने का प्रभाव पौधों की संवेदनशीलता पर भी पड़ता है।
भारतीय वैज्ञानिक प्रो. टी. एन. सिंह ने पौधों पर संगीत के प्रयोग किए। पौधों को प्रतिदिन 25 मिनिट वीणा की मधुर ध्वनि सुनाई। जिससे पौधों में शीघ्र फूल व फल आए तथा 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई। एक प्रयोग 'भरत नाट्यम' का बिना धुंघरू बाँधे ही किया जिसके परिणामस्वरूप मूंगफली और तम्बाकू के पौधे तेजी से बढ़े और उनमें दो सप्ताह पहले ही फूल आ गये।