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वनस्पति में संवेदनशीलता
___ आधुनिक वनस्पति विज्ञान के जन्मदाता कार्लवान लिनिअस का कहना है कि पौधे बोलने व कुछ सीमा तक गति करने को छोड़कर मानव से किसी भी बात में कम नहीं होते।
अतः हमारा कर्तव्य है कि हम जिस प्रकार मनुष्य, पशु, कीटपतंग आदि जीवों की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार वनस्पति के जीवों की भी यथा संभव रक्षा करें।
वनस्पति की उपर्युक्त संवेदनशीलता तो वैज्ञानिक यन्त्रों से सिद्ध हुई है। परंतु एक पौधे 'डेस्मोडियम' में तो बिना यन्त्रों के ही वनस्पति की संवेदनशीलता स्पष्ट देखी जा सकती है। इस पौधे को अंग्रेजी में टेलीग्राफ प्लाण्ट (तार पौधा) भी कहते हैं। भारत में यह देहरादून आदि उन पर्वतीय स्थानों पर पाया जाता है जो लगभग सात हजार फीट की ऊँचाई पर है। इस पौधे की ऊँचाई तीन-चार फीट होती है। इसके संयुक्त पत्ते होते हैं
और प्रत्येक पत्ता तीन पत्तियों से बना होता है। एक पत्ती बीच में होती है, जो बड़े आकार की होती है। ये दोनों अगल-बगल की पत्तियाँ एक विशेष प्रकार की हलचल करती हैं। जिस प्रकार तारबाबू तारघर में मेज पर रखी कुँजी को अंगुली से बार-बार दबाता है, उसी से संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचता है। उसी प्रकार इन दोनों की हलचल होती है।
जब सूर्य की धूप 72 अंश फॉरनाइट या इससे अधिक होती है तब ये दोनों छोटी पत्तियाँ तारघर की कुंजी की तरह ऊपर-नीचे होना प्रारंभ करती हैं, जिससे घर-घर की सी आवाज होती है। इसी प्रकार सभी पत्तियाँ ऊठक-बैठक का खेल करने लगती हैं। जिससे एक विशेष प्रकार की लय उत्पन्न होती है जो तारघर की याद दिलाती है। कभी-कभी ये एक मिनिट में 180 बार तक ऊपर नीचे हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त