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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
हाइड्रोजन बमों के विस्फोट से संयुक्त रूप से होती है। इन तूफानों की गति 250 किलोमीटर प्रति घण्टे तक हो सकती है। तूफान का गोल घेरा एक बहुत बड़े चक्के के समान घूमता है। उसका घेरा 150 से 1500 किलोमीटर तक हो सकता है। वैसे इन तूफानों की जिंदगी भी आदमी की जिंदगी के समान अनिश्चित होती है, कभी ये एक दिन में ही 'मर' जाते हैं तो कभी इनकी 'जिंदगी' महीनों बनी रहती है। सबसे विचित्र बात इन विस्तृत तूफानों के बिल्कुल बीच में स्थित ‘आँख' के कारनामों से संबंधित है। यह एक उल्लेखनीय क्षेत्र है, जो 5 से 55 किलोमीटर में फैला शांत क्षेत्र होता है। इसके चारों आँधियों के खतरनाक धक्के और बादलों की दीवारें, खंभे और बाल्कनियाँ तेजी से चक्कर खाती हैं।"
वायु का यह वैक्रिय-चक्रवातीय-रूप बड़ा भयंकर व विध्वंसकारी होता है। सन् 1736 में ऐसे चक्रवात से तीन लाख व्यक्ति मारे गये थे। सन् 1832 में दक्षिण के काकीनाडा जिले के करिगा' गाँव के तीस हजार निवासी अकाल ही काल के गाल में समा गये थे। मद्रास में 3 और 10 नवम्बर, 1965 को आये झंझावात ने बहुत उत्पात मचाया था।
वायुकाय के जीवों के प्रकार बतलाते हुए आगम में कहा है
बायर वाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता तंजहा-पाईणवाए, पडीणवाए, दाहिणवाए, उदीणवाए, उड्ढावाए, अहोवाए, तिरियवाए, विदि-सिवाए, वाउभामे, वाउक्कलिया वायमंडलिया, उक्कलियावाए, मंडलियावाए, गुंजावाए, झंझावाए, संवट्टगवाए, घणवाए, तणुवाए, सुद्धवाए, जे यावण्णे तहप्पगारा॥-प्रज्ञापना 1.26
अर्थात् बादर (स्थूल) वायुकाय के अनेक भेद कहे हैं। पूर्वीवात, पश्चिमीवात (पछुआ), दक्षिणवात, उत्तरवात, ऊर्ध्ववात अधोवात,
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