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वायुकाय तिर्यग्वात, विदिशिवात, वायुभ्रम उत्कलवात, समुद्रीवात, चक्रवात, मंडलीयवात, गर्जनवात, झंझावात, संवर्तवात, घनवात, शुद्धवात आदि वायु के अनेक प्रकार हैं। वायुकाय की सात लाख योनियाँ व सात लाख कुल कोटियाँ कही गयी हैं।
आधुनिक वायु-विशेषज्ञ वैज्ञानिक भी वायु के इसी प्रकार के अनेक भेद करते हैं यथा-पूर्वी हवा, पछुआ हवा, उत्तरी हवा, दक्षिणी हवा, समुद्री हवा, गर्जने वाला चालीसा, चक्रवात, झंझावात आदि। वायु के प्रकारों का वर्गीकरण करते हुए वायु के दो मुख्य भेद किये हैं। जैसे जल की धाराएँ दो प्रकार की होती हैं-सामयिक व नियतवाही। सामयिक धाराएँ वर्षा आदि इधर-उधर बह लेती हैं, उनका कोई निश्चित व नियत मार्ग नहीं होता है। नियतवाही धाराएँ नदियों के रूप में महाद्वीपों व महासागर में निश्चित या नियत मार्ग पर सतत् बहती रहती है। इसी प्रकार वायु की धाराएँ भी दो प्रकार की होती हैं-सामयिक व नियतवाही।
सामयिक हवाओं में मुख्य हैं-समुद्री हवा, स्थलीय हवा, मानसूनी हवा, चक्रवात, झंझावात आदि। नियतवाही हवाओं में मुख्य हैं-व्यापारिक हवाएँ, पछुआ हवाएँ आदि। व्यापारिक हवाएँ (Trade Winds) भूमध्यरेखा के उत्तर-दक्षिण के लगभग 25° अक्षांशों पर मध्य विषुवत् रेखा की ओर मुँह किये कुछ पश्चिम की ओर घूमती हुई बहती हैं। ये हवाएँ इतनी निश्चित दिशा व नियत मार्ग पर बहती हैं कि प्राचीन काल में अनेक जलयान इन्हीं के सहारे व्यापारिक माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाते थे। इसी कारण इन हवाओं का नामकरण व्यापारिक हवाएँ हो गया है। पछुआ हवाएँ 3°-70° अक्षांश के मध्य पूर्व की ओर मुड़ती हुई ध्रुवों की ओर मुँह किये बहती हैं। इन्हीं में से 40 और 50 अक्षांश