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वायुकाय
61 हैं कि-"चार शरीर होते हैं, यथा-औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, तेजस् शरीर और कार्मण शरीर।
यहाँ पर यह विशेष ज्ञातव्य है कि स्थावरकाय जीवों के पाँच भेदों में से केवल वायुकाय के जीवों के ही वैक्रिय शरीर कहा गया है। वैक्रिय शरीर में यह विशेषता होती है कि उसके आकार में परिवर्तन किया जा सकता है-उसका संकोच-विस्तार किया जा सकता है। वायुकाय के जीवों के शरीर की इस विशेषता को आज की वैज्ञानिक उपलब्धियों में प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। साइकिल या मोटर के ट्यूब में भरी वायु गर्मी के संयोग से अपने शरीर का विस्तार करती है और वह विस्तार जब इतना बढ़ जाता है कि ट्यूब में नहीं समा पाता है तो ट्यूब फट जाता है। ग्रीष्म ऋतु में धूप में पड़ी साइकिलों के ट्यूब स्वतः फट जाने का भी यही कारण है। लोहे के खाली ढोल, जिनके मुँह बंद होने से हवा बाहर नहीं निकल सकती, उनमें धूप की गर्मी से फैली हुई हवा के दबाव से मोचे निकलने लगते हैं, जिससे पटाखे छूटने जैसी आवाजें होने लगती हैं। इसका कारण भी वायु की विस्तारीकरण रूप वैक्रिय प्रक्रिया ही है।
वैक्रिय-प्रक्रिया स्वरूप वायुकाय के जीवों के शरीर का विस्तार होता है। यही विस्तार जब अत्यधिक बढ़ जाता है तो चक्रवात या झंझावात का रूप ले लेता है। झंझावत या तूफान की शक्ति, उसका विस्तार व रूप कितना अद्भुत होता है, इसका अनुमान निम्नांकित उदाहरण से लगाया जा सकता है
“एक मध्यम प्रकार का साइक्लोन, केवल एक दिन में दबाव के कारण इतनी शक्ति प्रदर्शित करता है जितनी बीस मेगाटन के 400