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8. वायुकाय
वायुकाय स्थावर जीवों का चौथा भेद है। जीवाभिगम, पन्नवणा, ठाणांग आदि आगमों में इन जीवों के शरीर, अवगाहना, संस्थान, आयु आदि अनेक द्वारों का विस्तृत वर्णन है।
वायुकाय के जीवों की अवगाहना (शरीर की लम्बाई) के विषय में जीवाभिगम, प्रथम प्रतिपत्ति, सूत्र 18 में कहा है कि पृथ्वीकाय के जीवों के समान ही वायुकाय के जीवों की अवगाहना जघन्य-उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग है; अर्थात् एक घन अंगुल (लगभग एक घन सेंटीमीटर) वायु में असंख्य जीव हैं। वर्तमान वैज्ञानिकों का कथन है कि हवा में 'थेकसस' नामक जीव हैं और ये जीव इतने सूक्ष्म हैं कि सूई के अग्रभाग जितने स्थान में इनकी संख्या एक लाख से भी अधिक होती है।
___ जैनागमों में वायुकाय के शरीरों की संख्या का वर्णन करते हुए कहा है
'तेसि णं भंते। जीवाणं कद् सरीरगा पन्नत्ता?' गोयमा! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता तं जहा-ओरालिए, वेउव्वए, तेयए,
-जीवाभिगम, प्रथमप्रतिपत्ति, सूत्र 26 अर्थात् श्री गौतम गणधर, भगवान श्री महावीर से पूछते हैं कि"हे भगवन्! वायुकाय के कितने शरीर होते हैं?" उत्तर में भगवान फरमाते