________________
47
पृथ्वीकाय को ही समझा और वे उससे बोले-'हमें इस छोटे से प्रदेश (जहाजपुर) की सीमा के बाहर निकाल दो फिर हम स्वयं कहीं चले जायेंगे।' श्रवण ने अनमने मन से कावड उठायी। आधे घंटे में प्रदेश पार हो गया। प्रदेश के पार होते ही श्रवण के मन में फिर परिवर्तन हुआ और उसने अपने पूर्वोक्त कटुवचन के लिए क्षमा माँगी।' अभिप्राय यह है कि पृथ्वीकाय के जीवों के स्वभाव का प्रभाव मानव पर उसी प्रकार पड़ता है जिस प्रकार मानव के स्वभाव का पड़ता है।
यह तो हम सब का प्रतिदिन का अनुभव है कि अनेक भू-भाग ऐसे होते हैं जहाँ जाते ही भय का उद्भव होता है और अनेक भू-भागों में पैर धरते ही हृदय करुणा, स्नेह व दया के भावों से भर जाता है। लोगों की सामूहिक रूप से रुक्ष व स्नेहशील प्रकृति होने के कारणों में भूमि की प्रकृति भी एक कारण है।
तात्पर्य यह है कि विज्ञान ने आज पृथ्वीकाय के एक कण में अगणित जीवों का होना; स्वतः भूमि का उठाव होना; पर्वत शिखरों की ऊँचाई बढ़ना; नवीन पर्वतों का जन्म होना तथा पृथ्वी की प्रकृति का मानव-प्रकृति पर प्रभाव पड़ना आदि को सिद्ध कर दिया है और ये इस बात के ज्वलन्त प्रमाण हैं कि पृथ्वीकाय उसी प्रकार सजीव है जिस प्रकार अन्य प्राणी।
000