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अप्काय पर नियमित रूप से निरंतर बहती रहती हैं उसी प्रकार सागर में भी हजारों मील लम्बाई वाली दर्जनों नदियाँ अपने निश्चित मार्ग पर निरंतर बहती रहती हैं। ये सागरीय-सरिताएँ दो प्रकार की होती है-उष्णजल वाली व शीतलजल वाली। उष्णजल वाली धाराओं में मुख्य हैं-गल्फ स्ट्रीम, क्यूरोसिको उत्तरी भू-मध्यधारा, दक्षिण भू-मध्यधारा, ब्राजील धारा,
ओयासिको धारा आदि। गल्फस्ट्रीम धारा भू-मध्य रेखा के समुद्र से आरंभ होती है और मैक्सिको, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के निकट बहती हुई यूरोप तक पहुँचती है। वहाँ इस धारा के दो हिस्से हो जाते हैं। एक हिस्सा ब्रिटिश टापुओं के पास होता हुआ नार्वे की ओर और दूसरा हिस्सा स्पेन के पास होता हुआ अफ्रीका की ओर चला जाता है। क्यूरोसिको धारा भूमध्य रेखा के सागर से उत्तर की ओर बहती हुई जापान के पूर्वी तट के पास से पूर्व की ओर मुड़ जाती है। ब्राजील, मेडागास्कर ओयासिको आदि उष्ण जल की सागर-सरिताएँ भी हजारों मील लम्बी बहती है। लैवेडो केनारी, कमस्चटका आदि शीतजल की सागर सरिताएँ भी हजारों मील लम्बी हैं। यद्यपि सागर-जल के मध्य इन सरिताओं का जल बहता है और इनका मार्ग भी स्थलीय सरिताओं की भाँति बहुत घुमाव-फिराव वाला होता है तथा ये विभिन्न दिशाओं में बहती हैं फिर भी इनका जल सागर में विलीन नहीं होता है और न ये अपने मार्ग से इधर-उधर ही बहती हैं। ये अपने अस्तित्व, व्यक्तित्व व विशेषताओं को नहीं छोड़ती हैं।
जिस प्रकार विकसित जीव जातियों में अपना विशेष गुणधर्म व स्वभाव होता है उसी प्रकार जलकाय के जीवों में भी अपना-अपना विशेष स्वभाव है। गंगा नदी का जल आरोग्यवर्द्धक व गोदावरी का जल कुष्ठ रोग वर्द्धक स्वभाव वाला है। सोवियत संघ में चार हजार से अधिक जल के ऐसे स्रोत हैं जो औषधि का काम देते हैं। काकेशस के एक जलस्रोत