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6. अपकाय
अप्काय अर्थात् जलकाय स्थावर जीवों का दूसरा भेद है। जल को भी जैनदर्शन के अतिरिक्त अन्य कोई दर्शन सजीव नहीं मानता है। जैनदर्शन में जल के विषय में न केवल सजीवता का ही वर्णन है अपितु इन जीवों की अवगाहना, संस्थान, योनि, कुल, आयु आदि का भी विस्तृत वर्णन है।
जलकाय के जीवों की अवगाहना का वर्णन करते हुए आगम में कहा गया है
जहेव सुहुमपुढविकाइयाणं -जीवाभिगम प्रथम प्रतिपत्ति, सूत्र 16
हे गौतम! पृथ्वीकाय के जविों की अवगाहना के समान अप्काय के जीवों की अवगाहना (शरीर की लम्बाई) भी अंगुल के असंख्यातवें भाग के बराबर जानना अर्थात् जलकाय के जीवों का शरीर इतना सूक्ष्म है कि जल की एक बूंद में असंख्य जीव रहते हैं।
जैसे अंडे में रहा हुआ प्रवाही रस, रस होते हुए भी पंचेन्द्रिय जीव है; उसी प्रकार जल भी जीवों का पिंड है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक कैप्टिन स्कवेसिवी ने यंत्र के द्वारा एक जल-कण में 36,450 जीव गिनाये हैं।
वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं का कथन है कि-“वर्षा की एक बूंद करीब पाँच लाख मेघ बूंदों एवं एक मेघ बूंद करोड़ों वाष्पपरमाणुओं से