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पृथ्वीकाय
अनेक भौगोलिकों व भू-वैज्ञानिकों ने पर्याप्त अनुसंधान कर यह सिद्ध कर दिया है कि जिस प्रकार अन्य प्राणी उत्पन्न होते, बढ़ते व मरते हैं, उसी प्रकार पृथ्वी खंड भी उत्पन्न होते, बढ़ते व मरते हैं। इन वैज्ञानिकों में प्रमुख हैं श्री एच.टी. वर्सटापेन। इनका कथन है कि न्यूगिनी के केन्द्रीय भागों में पर्वत अभी अपनी बाल्यावस्था पार कर यौवनावस्था में पहुँचे ही है। इनका जन्म अधिक पुराना न होकर 'प्लियोसीन' काल के अंतिम समय का है और 'रिश-प्लेशियम' काल के पश्चात् इनकी चोटियाँ ऊँची होती गई हैं। श्री सुगाते का मत है कि न्यूजीलैंड के पश्चिमी नेलशन के पर्वत 'प्लाइस्टोसीन' युग के अंतिम चरण में विकसित हुए हैं। आज जहाँ हिमालय है वहाँ किसी युग में एक विशाल महासागर था। कालांतर में धारा का सिरा उठने लगा और धीरे-धीरे पर्वतमाला का रूप लेने लगा। शिवालिक पहाड़ियाँ व इनके शिलाखंड हिमयुग के पूर्वकाल के हैं। भूगर्भवेत्ताओं का कथन है कि ये पर्वत अभी भी उठ रहे हैं व हिमालय के शिखर और भी अधिक ऊँचे होते जा रहे हैं।
श्री वेल्मेन के कथनानुसार आल्पस-पर्वतमाला का पश्चिमी भाग अब भी ऊँचा उठता जा रहा है और समुद्र की सतह से उसकी ऊँचाई में वृद्धि होती जा रही है। सेलिबीस के दक्षिण-पूर्वी भागों, भोलूकास के कुछ टापुओं एवं इंडोनेशिया के द्वीप समूह की कुछ और नई भूमि भी ऊँची उठती जा रही है।
एक चीनी पत्रिका के अनुसार विश्व की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट की ऊँचाई बढ़ रही है। किंतु इस पत्रिका ने नयी ऊँचाई नहीं दी। 'चीन विक्टोरियल' ने अपने ताजा अंक में लिखा है कि भारतीय उपमहाद्वीप