________________
विज्ञान का विवेचन
39 भी इन शक्तियों के उपर्युक्त अनुपात के ही तुल्य है। अत: आधुनिक विज्ञान, जो वस्तुतः विज्ञान न होकर मात्र भौतिकी ज्ञान है, का महत्त्व भी जीवन की सर्वांगीण दृष्टि से अत्यल्प ही है। इसका कितना ही विकास क्यों न हो वह एक क्षेत्रीय व ससीम ही होगा, साथ ही वह श्रम व सम्पत्ति-साध्य तथा जटिलता लिए हुए होगा; जबकि मानसिक शक्तियों की उपलब्धियाँ असीम लाभदायक, उपयोगिता लिए, सरल व कम श्रमसाध्य होती हैं, भौतिक सम्पत्ति की तो वहाँ अपेक्षा ही नहीं है। उदाहरण के लिए समाचार की दूर संचरण अवस्था को ही लें। भौतिक विज्ञान में इसके लिए टेलीग्राम, टेलीफोन, टेलीविजन, ट्रांजिस्टर आदि यंत्र है। ये यंत्र जटिल, श्रम व सम्पत्ति साध्य तो हैं ही, साथ ही इनकी गति अपेक्षाकृत धीमी व प्रसारण सीमित है। इनकी गति एक सैकेण्ड में केवल एक लाख छियासी हजार दो सौ मील है तथा सागर जल की गहनतल गहराई में इनकी पहुँच नहीं है, परंतु इनका स्थान लेने वाली मानसिक शक्ति टेलीपैथी को ही लीजिये। इसमें समाचार संचरण के लिए न किसी यंत्र की आवश्यकता है, न किसी श्रम-सम्पत्ति की। गति तो इतनी असीम है कि ब्रह्माण्ड के किसी भी भाग में, फिर वह चाहे कितना ही दूर क्यों न हो, समाचार भेजने में सैकेण्ड का पचासवाँ भाग भी नहीं लगता है। सागर की अतल गहराइयों, गिरि की गहन गुफाओं, इस्पात की मोटी परतों आदि अगम्य स्थलों पर भी इसकी गति निर्बाध है। यह तो मानसिक शक्ति की असीमता का आधुनिक युग में प्रयुक्त होने वाला एक उदाहरण है।
मन ऐसी असंख्य शक्तियों का भंडार है। इससे भी अनंत गुनी अधिक और विलक्षण शक्तियों व उपलब्धियों का धनी आत्मा है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि जो विज्ञ पुरुष मानसिक व आध्यात्मिक शक्तियों की उपलब्धियों से परिचित है, वह भौतिक शक्तियों की उपलब्धियों की