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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य 'ज्ञा' धातु से बना है, जिसका अर्थ जानना है; इसी प्रकार ‘साइन्स' शब्द लैटिन धातु "Scine" से बना है जिसका अर्थ भी जानना या पहचानना है। Scine से Scientia शब्द बना। जो 'ज्ञान' अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसी धातु से इटैलियन Scienza, स्पैनिश Ciencia, पुर्तगाली Sciencia, ऐंग्लोफ्रेंच Science, शब्द बने हैं, जो विज्ञान के समानार्थी हैं। 17वीं शताब्दी मे मध्यकाल के पूर्वतक ‘साइन्स' शब्द आधुनिक विज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त न होकर ज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त होता था। 17वीं शताब्दी के अंतिम चरण में यह अपने इस अर्थ से दूर हटने लगा और धीरे-धीरे इसने भौतिकी ज्ञान का रूप धारण कर लिया।
तथाकथित यह 'विज्ञान' वस्तुतः ‘नयज्ञान' है। नयज्ञान एकांगी होने से खण्डित व अधूरा ज्ञान है। ऐसा खण्डित या अधूरा ज्ञान कितना ही विशेष क्यों न हो वह जीवन के लिए कार्यकारी नहीं होता है। खंडित ज्ञान जीवन को खण्डित करता है और खंडित जीवन, जीवन नहीं, जीवन की विडंबना है, जीवन का भार ढोना है। जैसे-खंडित व विशृङ्खलित पुों से इंजन का संचालन नहीं होता है, पुों के इंजन के अनुरूप उचित
आकार-प्रकार के होने, उचित स्थान पर लगने तथा उनमें सामञ्जस्य स्थापित होने से ही इंजन में समीचीनता और संचालन शक्ति आती है; इसी प्रकार ज्ञान की विधाओं का जीवन के आवश्यक अंगों के अनुरूप पारस्परिक सामञ्जस्य ही सम्यग्ज्ञान या विज्ञान है। इसी विज्ञान में जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान, असीम आनन्द का आविर्भाव व अपरिमित शक्तियों का प्रादुर्भाव निहित है।
___ तात्पर्य यह है कि भारतीय विचारकों की दृष्टि से भौतिक तत्त्वों या उनके किसी एक अंग या विषय का विशिष्ट ज्ञान 'विज्ञान' नहीं है,