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जीव- अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
धम्माऽधम्मा पुग्गल, नह कालो पंच हुंति अजीवा । चलण - सहावो धम्मो, थिर-संठाणे अहम्मो य ।।
अवगाहो आगासं, पुग्गल जीवाण पुग्गला चउहा। खंधा देस पसा, परमाणु चैव नायव्वा ।।
अर्थ-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल, ये पाँच अजीव द्रव्य हैं। जो चलने में सहायक बनती है, वह धर्मास्तिकाय है। जो स्थिर होने में सहायक बनती है, वह अधर्मास्तिकाय है। जो जीव और पुद्गल को स्थान देने में सहायक है वह आकाशास्तिकाय है। वर्त्तन-परिवर्तन काल का लक्षण है। पूरण, गलन, विध्वंसन गुण वाला पुद्गल है।
आधुनिक विज्ञान में 'ईथर' द्रव्य में और धर्मास्तिकाय में समानता है। विज्ञान जगत् में आकर्षण शक्ति का एक रूप, गुरूत्वाकर्षण का क्षेत्र सामने आया है जिसमें अधर्मास्तिकाय के प्रायः सभी गुण पाये जाते हैं । आकाशास्तिकाय और काल का वैज्ञानिक रूप में विवेचन पुस्तक में किया गया है।
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विज्ञान पुद्गल के ठोस, द्रव्य, वायव्य और ऊर्जा - इन चार रूपों परमाणु से निर्मित ही मानता है। विज्ञान की दृष्टि में मौलिक द्रव्य वह है जिसमें अन्य द्रव्य का मिश्रण नहीं है। हाइड्रोजन, हीलियम आदि 103 तत्त्व मानता है। जो परमाणु के ही रूप हैं । पुद्गल के स्कन्ध, देश, प्रदेश, परमाणु, स्थूल-सूक्ष्म के छह भेद-प्रभेद, पुद्गल की विशेषताएँ - गतिशीलता, अप्रतिघातित्व, परिणामी - नित्यत्व, सघनता - सूक्ष्मता आदि का वैज्ञानिक समर्थन किया गया है।