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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य
लेता है। यहाँ तक की यदि कोई घुड़सवार भी इसके पास से गुजरे तो यह उसे भी अपना आहार बना लेता है।
'अफ्रीका महाद्वीप तथा मजड़ागास्कर द्वीप के सघन जंगलों में कहीं-कहीं मानवभक्षी वृक्ष मिलते हैं, जो मनुष्यों और जंगली जानवरों को अपना शिकार बनाते हैं। कहा जाता है कि एक मनुष्य-भक्षी वृक्ष की ऊँचाई 25 फुट तक होती है। ये शाखााएँ 1-2 फुट लम्बे काँटो से भरी रहती हैं। इस प्रकरण में मांसाहारी वनस्पतियों का विस्तार से विवेचन है।
कीट-भक्षी-पौधे-ये पौधे कीड़े-मकौड़े पकड़कर खाते हैं। युट्रीकुलेरियड इसी जाति का पौधा है। यह उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका, न्यूजीलैंड, भारत तथा कुछ अन्य देशों में पाया जाता हैं।
‘बटरवार्ट पौधा' भी कीड़ों को पकड़ने व खाने की कला में बड़ा। प्रवीण होता है। बटरवार्ट के फूल बहुत सुन्दर होते हैं और इसके सम्पर्क में आने वाला बेचारा कीट यह कल्पना भी नहीं कर पाता कि इतने रंगबिरंगे सुन्दर फूलों वाला यह पौधा प्राणघातक भी हो सकता है।
पुस्तक के प्रारम्भ में जीव-अजीव तत्त्व का विवेचन किया गया है। उसके पश्चात् जीव द्रव्य में पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय की सजीवता की विज्ञान से पुष्टि की गई है।
इसके पश्चात् वनस्पति में संवेदनशीलता नामक प्रकरण में दिया गया है जिसके अन्तर्गत वैज्ञानिक यंत्र गेल्वोमीटर और पोलीग्राफ आदि से सिद्ध हुआ कि वनस्पति में 1. सच-झूठ पहचानना, 2. सहानुभूति होना) 3. दयार्द्र होना, 4. हत्यारों को पहचानना आदि अनेक क्षमताएँ हैं।
विज्ञान जगत् में सजीवता की सिद्धि दशा विशेषताओं से होती है