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प्रथम ही श्रोतानि का स्वरूप सुनौ ।
गाया - सोता सुहव असूहो, उदह भिस्सोय चउदह सुहोई | सोतधरा मण आदा निर्माणिय पष्णतिले मुह अम्ही ॥७॥
अर्थ --- अब श्रोतानि का शुभाशुभ है सो हो कहिये है। श्रोता शुभ अशुभ करि दोय भेदरूप हैं। सो चौदह श्रोतात मिश्र हैं और चारि श्रोता शुभ हैं। भावार्थ । चौदह श्रोता मिश्र हैं जिनमें आठ तो अशुभ हैं अरु षट् शुभ हैं। सो प्रथम अशुभ आठ के नाम-पाषाणसम. फूटा घड़ा सम, मोडासम, घोटकसम, चालती सम, मशकसम, सर्प सम, भैंसासम इनका स्वभाव कहिये है। सो धर्मात्मा जीवन को चित्तदेय सुनना योग्य है जो जोब उपदेश सुनै, पूछें, आप पढ़ें, बहुतकाल के कथन यादि राखँ इत्यादि बहुत कालताई धर्म किया करें परन्तु अन्तरंग में पापबुद्धि भोजन व हिंसा मार्ग नाहीं तजै। कुधर्म, कुगुरु के पूजने की श्रद्धा नाहीं मिटें। आप क्रोध मानादिक कषाय नहीं तजैं। जाके हृदय में जिनवानी नाहों रुचै सो पाषाण समान श्रोता है । २ । जो रोज दिन प्रति शास्त्र सुनै परन्तु सुनती बार तो सामान्य-सा यादि रहे पीछे भूलि जाय दिलविषै यादि नांहीं रहे सो फूटे घड़ासमान श्रोता है जैसे मैदा पालनहारेको मारै तैसे ही श्रोता जा वक्ता अनेक दृष्टान्त युक्ति सोख अनेक शास्त्र कला आदिक करि पोछें काल पाये जाते कथन सुन्या सौख्या था ताहो का दोषी होय ताका घात करें, सो मैदा समानि श्रोता कहिये । ३ । जैसे घोड़े को घास दाना रातिब देते घोड़ा रातिब देने वाले मारे काटे तैस जो श्रीता जाके पास उपदेश सुनें ताही ते द्वेष करै सो घोड़ा सामानि श्रोता जानना । ४ । जैसे चालनी वारीक भला आटा तो डारिदे अरु भूसी अङ्गीकार करें तैसे ही मला उपदेश सुनै ताका गुण तो ना ग्रह अरु औगुन ग्रहै। जो शास्त्र में दान का तथा चैत्द्यालय करावने आदि द्रव्य लगावने का उपदेश सुनि यह ज्ञान दरिद्री ऐसा सम, जो हम धनवान हैं सो हमकौं कहे हैं कि धन खरचौ सो हमारे धन कहां है ? इमि समभि पापबन्ध करें। तथा तपका कथन शास्त्र में सुनै सो इमि समझें जो हम तन के सुपुष्ट हैं सो हमको कहै है तप करो हम तप होता नाहीं, ऐसा समझ पापबन्ध करें है तथा दान-पूजा शीलसंजम इत्यादि का उपदेश होय तब तो ऊंघें । तथा चित्तविभ्रम में रहे सो नहीं सुनें। कोई निन्दा करै तथा कोई मूर्ख सभा में कलह की कथा ले उठे ताकूं सुनै । तथा कोई पाप कारण को निन्दा शास्त्र में निकसे कि अभक्ष्य खाना योग्य नाहीं । चोरी करना योग्य नाहीं ।
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