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। सो निःकाक्षित गुण है । सा यह गुण सेठ की कन्या गुणवती ने पाल्या है। २ । जहां पुद्गलस्कन्ध असुहावने । देखि ग्लानि नहीं करनी सो निर्विचिकित्सा गुण है। सो यह राजा उद्यायन ने पाल्या।३। शुद्धदेव, शुद्धगुरु, शुद्धधर्म की परीक्षा करि सेवना सो अमददृष्टि गुण है सो यह रानी रेवती ने पाल्या।४। जहां पराया दोष जानिये तो हु धर्मात्मा जीव प्रकाशैं नहीं सो उपग्रहन गुण है। यह गुण सेठि जिनेन्द्रभक्त ने पाल्या । ५। और कोई धर्मात्मा जीव धर्म सेवन करता कोई कारण पाय धर्म त डिगता होय रोगकरि विभ्रम करि इत्यादिक कारसनिकरि डिगता होय तथा धर्म सेवन विर्षे जाके अथिरता होती होय तौ ताकों तनकरि धनकरि वचनकरि धर्म में थिर करे सो स्थितीकरण गुण है। सो वारिश राजा श्रेणिक के पुत्र मुनि भये तिनने पाल्या है।६। धर्मो जीवनि को देखि धर्मस्थान कं देखि हर्ष करना सो वात्सल्य भाव है सो यह वात्सल्य गुण विष्णुकुमारजी । ने पाल्या है। ७। और जैसे बने तैसे धर्म की प्रभावना उद्योत करें धर्म उत्सव देखि राजी होई सो प्रभावना अङ्ग है। यह गुण बनकुमारजी ने पाल्या है । ८। रोसे कहे जो यह अष्ट अङ्ग हैं सो इन अष्ट अङ्ग सहित सम्यग्दर्शन के धारी जीवनि के सहज ही दृष्टि शुद्ध होय गई है ताके प्रसाद करि पदार्थ नि का स्वरूप जैसे का तैसा भास है । सो यथावत भासिवै कर रागद्वेष नाहीं होय है। इहाँ प्रश्न। जो आपने कहा सम्यक्त्व भये पदार्थनि पै रागद्वेष नाही होय सो अविरत सम्यग्दृष्टिनि के तो प्रत्यक्ष रागद्वेष हिंसा आरम्भ भासै है। ताका समाधान—रागद्वेष का अभाव दोय प्रकार है। एक तो प्रत्यक्ष रागद्वेष का अभाव और एक श्रद्धानपूर्वक। सो प्रत्यक्ष रागद्वेष का अशव तो जिनदेव केवली के है तथा ग्यारहवें बारहवें गुणस्थानवर्ती मुनीश्वर के है। तथा षष्टम गुणस्थान आदि दसवें गुरास्थानपर्यन्त महावतिन के हैं। और नीचले, अव्रत चौथे गुणस्थानीन के सदृष्टि होते निकट संसारी भव्यात्मा के श्रद्धानपूर्वक रागद्वेष नांही। वानिमित्त दोष तें रागी-सा है। परन्तु शुद्धदृष्टि के प्रसाद ते अन्तरंग रागद्वेष होता नाहीं। यह बिना ही जतन सहज स्वभाव है। सो ऐसी दृष्टि होते अनेक लहरि परिणति विर्षे उठे हैं। जैसे सागर विर्षे तरंग चले तसे सममावन विर्षे विचार होय है ताही के प्रसाद | करि यह सुदृष्टितरंगिणी नाम शास्त्रमैं कहूं हूं। सो ताके सुनने कू अरु कहने कू ऐसे शुभ श्रोता तथा शुभ वक्ता ||
चाहिये । सो श्रोतानि के, शुभाशुभ करि अनेक भेद हैं। और वक्तान् के भी शुभाशुभ करि अनेक भेद हैं सो