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| मोक्षरूपी कल्पवृक्ष की दृढ़ जड़ है। तथा मोक्षमहल का प्रथम सोपान कहिये सीढ़ी है। सो रोसे सम्यक्त्व के ये ।। पनीस दोष हैं जहां ये दोष नहीं सो शुद्ध सम्यक्त्व जानना। सो पच्चीस दोष बताईये हैंगाचा-भद बसु सम्मक, दोसड, आयतन षट् य तीन मूढ़ाए। इनदोसप विण सम्म, निम्मत सिंब दीव सम गेय ॥ ६ ॥
अर्थ—पद जाठ, सम्यक्त्व के दोष आठ, अनायतन षट मढ़ता तोनि ये पच्चीस सम्यक्त्व के दोष हैं। अब इनका सामान्य अर्थ कहिये है। जहाँ मामा नाना महारे से काहू के नांहों ऐसा माता का पक्ष लै मद करना सो जातिमद है। । हम बड़े कमाऊ हम अनेक बुद्धि करि धन पैदा कर इत्यादिक अपनी कमाई का मद करना सो लाभमद है। २ । जहाँ हमारे पिता दादा धनादि करि बड़े थे इत्यादिक पिता की पक्ष का मद करना सो कुलमद है। ३। हमारे-सा रूप और काहू का नाही इत्यादिक अपने रूप की महिमा देखि मद करना सो रूप मद है। ४ । हम बड़े तापस्ती रो कदि आपने नए का मद करना सो तप मद है । ५। और अपने बल की अधिकता जानि कहना जो हम-सा बलवान और नाहीं रोसा कहि मद करना सो बल मद है ।६। हमसे और पण्डित नाही हम नाना प्रकार तर्क व्याकरण प्राकृत छन्द काव्य पड़े हैं। इत्यादिक अपनी पण्डिताई का मद करना सो विद्या मद है। ७। हमारा बड़ा हुकुम है राज पञ्च सर्व हमारी आज्ञा माने हैं। ऐसा आपको बड़ा जानि मद करना सो अधिकार मद है। ऐसे यह आठ मद होते सम्यक्त्व मलिन होय हैं। जैसे उज्ज्वल वस्त्र मैल के सम्बन्ध पाय मलिन होय । तैसे इन मदनि के निमित्त पाय सम्यक्त्व-धर्म मलिन होय है। ताते रोसा जानि सम्यग्दृष्टि ये मदभाव नाही करें हैं। जे मिथ्यात्वलिप्त अज्ञानी और धर्म भावमा रहित मोक्षमार्ग जानिवेकों अन्ध समानि पापमार बंध करनहारे वे इन अष्टमदन को करें हैं । और जे जगत त उदासीन सुखराशी सम्घकगुरापासी, जानें मदफांसी वे ए मद पापफर करता जानि मदभाव नाहों करें हैं ।। इति अष्टमद ॥ अगै अष्ट मल लिलिये है। जहां धर्मकार्यनि के सेवनैविर्षे माता-पिता कुटुम्बादि राजा पंच इत्यादिक मुझे पापी जानेंगे ऐसा जानि आप कोई धर्म का सेवन शंका सहित करै सो सम्यक्त्व धर्मकौं मल लागै सो यह शंका नामा दोष है ।। और धर्मसेवन करि पंचेन्द्रिय जनितसुर्खान की अभिलाषा करना सो सम्यक-धर्म का कक्षिा नाम दोष है। २। और धर्मात्मा जीवनि के शरीर में कर्म उदय ते रोग करि तन मलिन भया। सनमें फोड़ा, गमड़ा, वायु. पित्त,