________________
सो विशुद्धि लब्धि कहिये। जो परिणामन की विशुद्धता नाही होय तो सम्यक्त्व नाहीं होय, तातै परिणामन की विशुद्धता चाहिये।३। बहुरि मोहनीय-कर्म की स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागर की है ताको अपने परिणाम की विशुद्धता के बलकरि कर्म स्थिति घटाय के अन्तःकोडाकोडी की राखै सो प्रायोग्य लब्धि है। जो मोह-कर्म की उत्कृष्ट स्थिति होय तो सम्यक्त नाही होय । तातै मोहनीय-कर्म की स्थिति घटनी चाहिये।४। बहुरि करणलब्धि के तीन भेद हैं—अधःकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण जहाँ अधःकरण होय तब समय-समय परिणामन को विशुद्धता बढ़ती जाय । आर जे-जे कर्मनि को स्थिति आगे बँधे होय थी तात कर्मस्थिति घटती बंध होय। साता वेदनीय, प्रादेय, सौभाग्य, यश-कीर्ति इन जादि शुभ प्रकृतिन का अनुभाग बधती ( अधिक ) बंध होय । और असातावेदनीय, अयशःकोर्ति, दुर्भग, अनादेय इन आदिक अशुभ-कमनि का अनुभाग घटती बंध होय। पहिले पीछे समय में जीवनि के अधःकरण होय तिनको विशुद्धता के स्थान मिलै भी, नहीं भी मिलै, तातें याका नाम अधःकरण है। २। और जामें समय-समय असंख्यात गुखो कर्म नि की निर्जरा होय सो अपूर्वकरण है। और अशुभ-कर्मनि का अनुभाग पलट शुम रूप होय । समय-समय कर्मनि की स्थिति घटती होय । समय-समय शुभ-कर्मनि का अनुभाग बढ़ता होय। जिन जीवन ने समय अन्तरतें करण मांडा होय तौ परस्पर तिन जीवनि की विशुद्धता नहीं मिले। जाने प्रथम समय में अपूर्वकरण मांडा और काह ने दोय च्यारि पाचादि समय पीछे
करण मांडा होय तौ पहिले करणमांडा ताकी विशुद्धता महानिर्मल होय, याको विशुद्धता के पिछले करण || करनहारे जीव कबहूँ नहीं पाव। इनके परस्पर विशुद्धता नहीं मिले तात याका नाम अपूर्वकरण है।२। अनेक
जोवनि की समयवर्ती विशुद्धता समान होय। तीनि काल सम्बन्धि जीवनि के अनिवृत्तिकाल समय सर्वजीवनि की विशुद्धता एक-सी होय सो अनिवृत्तिकरण है। ३। ऐसे ये करणलब्धि है। सो यह पाँच लब्धि हैं। तहाँ यता विशेष जो च्यारि लब्धि तौ भव्य अभव्य दोऊनि के होय है तात समान हैं। करण लब्धि सम्यक्त्व होते | निकट संसारी भव्यात्मा के ही होय है इस करणलब्धि के पूर्ण होते अन्त समय में सम्यक्त्व को पूर्णता होय
जीव अल्पसंसार का धारणहारा सम्यग्दृष्टि होय है । सो आत्मिक स्वभाव का वेता परद्रव्य ते उदासीन जान्या | है आप चैतन्य स्वभाव अर पर जड़त्व भाव ऐसा सो भव्यात्मा सम्यग्दर्शनी कहिये ऐसे इन पंचलब्धिनि का