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प्रस्तावना
रहते हों, यह मुझे याद नहीं। ज़मीनपर बैठना और कुरसीपर बैठना उन्हें दोनों ही समान थे । सामान्य रीति से अपनी दुकान में वे गद्दीपर बैठते थे ।
उनकी चाल धीमी थी, और देखनेवाला समझ सकता था कि चलते हुए भी वे अपने विचारमें मग्न हैं । आँख में उनकी चमत्कार था । वे अत्यंत तेजस्वी थे । विह्वलता ज़रा भी म थी । आँखमें एकाग्रता चित्रित थी । चेहरा गोलाकार, होंठ पतले, नाक न नोकदार और न चपटी, शरीर दुर्बल, कद मध्यम, वर्ण श्याम, और देखने में वे शान्त मूर्ति थे । उनके कंठमें इतना अधिक माधुर्य था कि उन्हें सुननेवाले थकते न थे । उनका चेहरा हँसमुख और प्रफुल्लित था । उसके ऊपर अंतरानंद की छाया थी। भाषा उनकी इतनी परिपूर्ण थी कि उन्हें अपने विचार प्रगट करते समय कभी कोई शब्द ढूँढना पड़ा हो, यह मुझे याद नहीं । पत्र लिखने बैठते तो शायद ही शब्द बदलते हुए मैंने उन्हें देखा होगा । फिर भी पढ़नेवाले को यह न मालूम होता था कि कहीं विचार अपूर्ण हैं, अथवा वाक्य-रचना त्रुटित है, अथवा शब्दोंके चुनावमें कमी है।
यह वर्णन संयमीके विषयमें संभव है । बाह्याडंबर से मनुष्य वीतरागी नहीं हो सकता । वीतरागता आत्माकी प्रसादी है । यह अनेक जन्मोंके प्रयत्नसे मिल सकती है, ऐसा हर मनुष्य अनुभव कर सकता है । रागोंको निकालनेका प्रयत्न करनेवाला जानता है। कि राग रहित होना कितना कठिन है । यह राग रहित दशा कविकी स्वाभाविक थी, ऐसी मेरे ऊपर छाप पड़ी थी ।
मोक्षकी प्रथम सीढ़ी वीतरागता है । जबतक जगतकी एक भी वस्तुमें मन रमा है तबतक मोक्षकी बात कैसे अच्छी लग सकती है ! अथवा अच्छी लगती भी हो तो केवल कानोंको ही — ठीक वैसे ही जैसे कि हमें अर्थके समझे बिना किसी संगीतका केवल स्वर ही अच्छा लगता है । ऐसी केवल कर्णप्रिय क्रीड़ामेंसे मोक्षका अनुसरण करनेवाले आचरणके आने में बहुत समय बीत जाता है । आंतर वैराग्यके बिना मोक्षकी लगन नहीं होती । ऐसे वैराग्यकी लगन कविमें थी ।
प्रकरण चौथा व्यापारी जीवन
* " वणिक तेहनुं नाम जेह जूठूं नव बोले, वणिक तेहनुं नाम, तोल ओडुं नव तोले, वणिक हनुं नाम बापे बोल्युं ते पाळे, वणिक तेहनुं नाम व्याजसहित धन वाळे, विवेक तोल ए वणिकनुं, सुलतान तोल ए शाव छे, वेपार चूके जो वाणीओ, दुःख दावानळ थाय छे "" 1
- सामळभट्ट
* बनिया उसे कहते हैं जो कभी झूठ नहीं बोलता; बनिया उसे कहते हैं जो कम नहीं तोलता; बनिया उसका नाम है जो अपने पिताका वचन निभाता है; बनिया उसका नाम है जो व्याजसहित मूलधन चुकाता है। बनियेकी तोल विवेक है; साहू सुलतानकी तोलका होता है। यदि बनिया अपने बनिजको चूक बाय तो संसारकी विपत्ति बढ़ जाय । -अनुवादक.