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रायचंद माईके संस्मरण एकके बाद एक सब शब्द कह सुनाये । मैं राजी हुआ, चकित दुआ और कविकी स्मरणशक्तिके विषयमें मेरा उच्च विचार हुआ। विलायतकी हवा कम पड़नेके लिये यह सुन्दर अनुभव हुआ कहा जा सकता है।
कविको अंग्रेज़ी ज्ञान बिलकुल न था। उस समय उनकी उमर पच्चीससे अधिक न थी। गुजराती पाठशालामें भी उन्होंने थोड़ा ही अभ्यास किया था। फिर भी इतनी शक्ति, इतना ज्ञान और आसपाससे इतना उनका मान ! इससे मैं मोहित हुआ । स्मरणशक्ति पाठशालामें नहीं बिकती, और ज्ञान भी पाठशालाके बाहर, यदि इच्छा हो---जिज्ञासा हो तो मिलता है, तथा मान पानेके लिये विलायत अथवा कहीं भी नहीं जाना पड़ता; परन्तु गुणको मान चाहिये तो मिलता है—यह पदार्थपाठ मुझे बंबई उतरते ही मिला ।
कविके साथ यह परिचय बहुत आगे बढ़ा । स्मरणशक्ति बहुत लोगोंकी तीव्र होती है, इसमें आश्चर्यकी कुछ बात नहीं । शास्त्रज्ञान भी बहुतोंमें पाया जाता है । परन्तु यदि वे लोग संस्कारी न हों तो उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती । जहाँ संस्कार अच्छे होते हैं, वहीं स्मरणशक्ति और शास्त्रज्ञानका संबंध शोभित होता है, और जगत्को शोभित करता है । कवि संस्कारी ज्ञानी थे।
प्रकरण तीसरा
वैराग्य अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे, क्यारे थईशुं बाह्यान्तर निग्रंथ जो, सर्व संबंधनुं बंधन तीक्ष्ण छेदीने, विचरशुं कब महत्पुरुषने पंथजो ! सर्व भावथी औदासीन्य वृत्ति करी, मात्र देह ते संयमहेतु होय जो;
अन्य कारणे अन्य कशुं कल्पे नहि, देहे पण किंचित् मूछी नव जोय जो-अपूर्व०
रायचन्द भाईकी १८ वर्षकी उमरके निकले हुए अपूर्व उद्गारोंकी ये पहली दो कड़ियाँ हैं।
__जो वैराग्य इन कड़ियोंमें छलक रहा है, वह मैंने उनके दो वर्षके गाढ़ परिचयसे प्रत्येक क्षणमें उनमें देखा है । उनके लेखोंकी एक असाधरणता यह है कि उन्होंने स्वयं जो अनुभव किया वही लिखा है । उसमें कहीं भी कृत्रिमता नहीं। दूसरेके ऊपर छाप डालनेके लिये उन्होंने एक लाइन भी लिखी हो यह मैंने नहीं देखा । उनके पास हमेशा कोई न कोई धर्मपुस्तक और एक कोरी कापी पड़ी ही रहती थी। इस कापीमें वे अपने मनमें जो विचार आते उन्हें लिख लेते थे। ये विचार कभी गधमें और कभी पद्यमें होते थे । इसी तरह ' अपूर्व अवसर' आदि पद भी लिखा हुआ होना चाहिये ।
खाते, बैठते, सोते और प्रत्येक किया करते हुए उनमें वैराग्य तो होता ही था। किसी समय उन्हें इस जगत्के किसी भी वैभवपर मोह हुआ हो यह मैंने नहीं देखा ।
__ उनका रहन-सहन मैं आदरपूर्वक परन्तु सूक्ष्मतासे देखता था। भोजनमें जो मिले वे उसीसे संतुष्ट रहते थे। उनकी पोशाक सादी थी। कुर्ता, अंगरखा, खेस, सिल्कका डुपट्टा और धोती यही उनकी पोशाक थी। तथा ये भी कुछ बहुत साफ़ या इस्तरी किये हुए