________________
१४९
मंडलपर संविभागके साथ भोजन करना नहीं कल्पै. कहांतक ? कि जो एक मासिक, दो मासिक, तीन मासिक, च्यार मासिक, पांच मासिक, छे मासिक, जितना तप कीया हो, उतने मास और प्रत्येक मासके पीछे पांच पांच दिन. एवं छे मासके तपवालेके साथ तपके सिवाय एक मास साथमें भोजन नहीं करे. कारण-तपस्याके पारणेवालोंको शाताकारी आहार देनाचाहिये. वास्ते एकत्र भोजन नहीं करे. बादमें सर्व साधु संविभाग संयुक्त सामेल आहार करे.
( २७ ) परिहार तप करनेवाले मुनिके पारणादिमें अश- , नादि च्यार आहार वह स्वयं ही ले आते है. दुसरे साधुको देना दिलाना नहीं कल्पै. अगर आचार्यमहाराज विशेष कारण जानके आज्ञा दे तो अशनादि आहार देना दिलाना कल्पै. इसी माफिक घृतादि विगइ भी समझना.
(२८ ) किसी स्थविर महाराजकी वैयावश्चमे कोइ परिहारिक तप करनेवाला साधु रहेता है, तो उस परिहारिक तपस्वीके पात्र लाया हुवा आहार स्थविरोंके काममें नहीं आवे. अगर स्थविरं महाराज किसी विशेष कारणसे आज्ञा दे दे किहे आर्य! तुम तुमारे गौवरी जाते हो तो हमारे भी इतना आहार ले आना. तो भी उस परिहारिक साधुके पात्रमें भोजन न करे. आहार लानेके बादमें आचार्य अपने पात्रमे तथा अपने कमंडलमें पाणी लेके काम लेवे ( भोगवे).
(२९ ) इसी माफिक परिहारिक साधु स्थविरोंके लीये गौचरी जा रहा है. उस समय विशेष कारण जान स्थविर कहे कि-हे आर्य! तुम हमारे लीये भी अशनादि लेते आना. आ. हारादि लाने के बाद अपने अपने पात्र आहार, कमंडलमें पाणी ले लेवे. फिर पूर्वको माफिक आहारादि भोगवे.