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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन उपर्युक्त उदाहरण में ही ईंधन, अग्नि, पात्र, अन्न एवं पकाने वाला व्यक्ति चाहिए। ये सभी तत्त्व क्रिया के साधक हैं, इनका अपने नियत अर्थ में इसीलिए क्रिया से सम्बन्ध है । तदनुसार भाषागत वाक्य में प्रयुक्त होने पर ये कारक का रूप धारण करेंगे। इन साधनों की प्रवृत्तियाँ क्रिया की सिद्धि में भिन्न-भिन्न प्रकार से होती हैं । जिस रूप में ईन्धन क्रिया का साधक है, उसी रूप में पकाने वाला व्यक्ति नहीं । इसका कारण साधनों का प्रवृत्ति-भेद है । वास्तव में भाष्यकार के अनुसार इन साधनों की प्रवृत्ति क्रिया के रूप में प्रतिफलित होती है ।
क्रिया की गम्यमानता से कारक की व्यवस्था क्रिया और कारक की पृथक् कल्पना की ही नहीं जा सकती, क्योंकि वे अविच्छेद्य रूप में परस्पर बँधे हुए हैं । क्रिया के अभाव में कारक की सत्ता नहीं होगी तो दूसरी ओर कारकों के अभाव में क्रिया निरर्थक हो जायेगी। ऊपर जो हमने क्रिया का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए यह कहा है कि केवल क्रिया से भी वाक्य हो सकता है, उसमें भी सूक्ष्मरूप से क्रिया के साधक तत्त्व गम्यमान होते ही हैं । 'गच्छ' में मध्यमपुरुष एकवचन के रूप में 'त्वम्' कर्ता की प्रतीति होती है। इसके अतिरिक्त प्रकरणानुसार कर्म, करण आदि साधनों की भी प्रतीति होगी। यहाँ तक कि अस्ति, भवति आदि सत्तावाचक क्रियाओं में भी 'घट:' प्रभृति प्राकरणिक साधक पदार्थों का बोध होता है । कोई पूछता है - 'अप्युपाध्यायो गृहानिर्गतः' ( गुरुजी घर से निकल गये क्या ? ) दूसरा उत्तर देता है-'नहि नहि, अस्ति' । इस 'अस्ति' क्रिया में उपाध्याय कर्ता के रूप में तथा गृह अधिकरण के रूप में गम्यमान है कि गुरुजी घर में हैं। अतः क्रिया में सूक्ष्मरूप से ही सही, कारकों का रहना अनिवार्य है अन्यथा क्रिया की पूर्ति ही नहीं होगी। दूसरी ओर कारकों को तो स्थूलरूप में ही क्रिया की आवश्यकता होती है । हाँ, कभी-कभी गम्यमान क्रिया से भी काम चलता है तथा कारकविभक्ति का प्रयोग देखा जाता है; जैसे—अलं श्रमेण । यहाँ साधनरूप क्रिया का करण श्रम है, इसलिए उसमें तृतीया विभक्ति समर्थनीय है। अर्थ है-श्रमेण साध्यं नास्ति ( न सिध्यति ) । इसी प्रकार विवाह के अवसर पर अर्घ, आचमनीय तथा मधुपर्क का ग्रहण जब कन्या का पिता अपने भावी जामाता को कराता है तो उस समय आचार्य कहते हैं-मधुपर्कः मधुपर्क: मधुपर्कः । इसमें 'वर्तते' क्रिया गम्यमान है जिसका कर्ता मधुपर्क है । यदि क्रिया श्रूयमाण न हो, न ही गम्यमान-तब तो कारक का नाम दिया ही नहीं जा सकता।
यहां यह प्रश्न होता है कि वाक्य में जब क्रिया का होना अनिवार्य है, जिससे १. 'कारकाणां प्रवृत्तिविशेषः क्रिया'।
-महाभाष्य २, पृ० १२३ २. विवाहपद्धति का आरम्भ-'मधुपर्कः मधुपर्कः मधुपर्क इत्याचार्येणोक्ते; मधुपर्कः प्रतिगृह्यतामिति पिता ब्रूयात्, मधुपकं प्रतिगृह्णामीति वरो ब्रूयात्' ।
-आश्व० गृह्यसूत्र १।२४।७