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अध्याय : ६
करण-कारक
व्युत्पत्ति कृ-धातु ( डुकृञ् करणे ) से करण के ही अर्थ में ल्युट्-प्रत्यय लगाने पर करण शब्द की सिद्धि होती है, जिससे इसका व्युत्पत्तिजन्य अर्थ होता है जिसके द्वारा कोई कार्य सम्पन्न हो ( क्रियतेऽनेनेति )। विभिन्न शास्त्रों में इसका ग्रहण विविध अर्थों में किया गया है । व्याकरण में यह कारक-विशेष है। न्यायशास्त्र में प्रकृष्ट कारण' के अर्थ में तथा सांख्यदर्शन में इन्द्रिय, मन, अहंकार तथा बुद्धि का सम्मिलित बोध कराने के लिए इसका प्रयोग होता है। इन सभी अर्थों में कारकविशेष-रूप करण को ही मूल अर्थ कह सकते हैं, क्योंकि पिछले अर्थ न्यूनाधिक रूप से उसी से प्रभावित हैं ।
साधकतम कारक पाणिनि ने करण का लक्षण किया है-'साधकतमं करणम्' ( पा० १।४।४२ )। साधक का अर्थ है--क्रियासिद्धि में उपकार ( सहायता) करने वाला । अतिशय के प्रदर्शनार्थ तमप्-प्रत्यय लगा है ( 'अतिशायने तमबिष्ठनो' ५।३।५५ ) । अतएव सूत्रार्थ है कि क्रियासिद्धि में प्रकृष्ट ( सबसे अधिक ) उपकार करने वाला कारक करण है; यथा-'दात्रेण लुनाति, परशुना छिनत्ति'। यहाँ लवन तथा छेदन क्रियाओं की सिद्धि में क्रमशः दात्र ( हंसुआ ) और परशु परम उपकारक है, अतः इन्हें करणसंज्ञा हुई है ।
सामान्यतया सभी कारक क्रियासिद्धि में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उपकारक होते हैं, तथापि करण की उपकारकता प्रकृष्ट है; इसीलिए तमप् प्रत्यय लगाया गया है । पतञ्जलि इस सूत्र पर किये गये अपने भाष्य में केवल इस तमप्-प्रत्यय के प्रयोजन का ही विवेचन करते हैं । उनके अनुसार तमप का यह प्रयोजन नहीं कि सामान्य रूप से क्रिया के साधक सभी कारकों में अतिप्रसंग-दोष के निवारणार्थ यह प्रत्यय लगाकर करण को अतिशायन-स्तर दिया गया है । कारण यह है कि कारक-प्रकरण में, जहाँ पूर्वापरक्रम तथा विप्रतिषेध-परिभाषा भी प्रक्रान्त होती है, करण के पूर्व आनेवाले कारक अपवाद होने के कारण इसे व्यर्थ कर देंगे, क्योंकि अपवाद प्रबलतम बाधक होता है ( 'परनित्यान्तरङ्गापवादानामुत्तरोत्तरं बलीयः'-परि० ) । दूसरी ओर, करण के बाद में आने वाली कारकसंज्ञाएँ परत्व के कारण ( यदि वे सावकाश हों ) अथवा अनवकाश होने के कारण ( यदि वे निरवकाश हों) करण-संज्ञा की बाधिका
१. 'अतिशयितं साधकं साधकतमं प्रकृष्टं कारणमित्यर्थः' । 'तदेतस्य त्रिविधस्य कारणस्य मध्ये यदेव कथमपि सातिशयं तदेव करणम्'। -तर्कभाषा, पृ० १९, ३९
२. 'करणं त्रयोदशविधम् । तथा इस पर तत्त्वकौमुदी। -सांख्यकारिका, ३२