Book Title: Sanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Author(s): Umashankar Sharma
Publisher: Chaukhamba Surbharti Prakashan
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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्वानुशीलन
प्रथम-द्वितीय काण्ड-रघुनाथशास्त्रिकृत 'अम्बाक:' व्याख्या-सहित, वाराणसेय
सं० विश्व० ( १९६४-६८)। भवानन्द-कारकचक्र ( माधवी-सहित ), चौखम्बा ( १९४२ )। भीमाचार्य झलकीकर-न्यायकोश, भाण्डारकर-प्राच्यविद्या-संशोधन-मन्दिर, पूना
( १९२८)। भोज-सरस्वतीकण्ठाभरण ( नारायणदण्डनाथ कृत हृदयहारिणी-सहित ), प्रथम
अध्याय, त्रिवेन्द्रम् ( १९३५ )। माधवाचार्य-(१) सर्वदर्शनसंग्रह-हिन्दी-व्याख्या-सहित ( उमाशंकर शर्मा ),
चौखम्बा ( १९६४ )।
(२) माधवीयधातुवृत्ति, सं०-अनन्तशास्त्री फड़के, चौखम्बा ( १९३४ )। यास्क-निरुक्त ( दुर्गवृत्ति ), वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई। रघुनाथ-लघुभाष्य ( सारस्वत व्याकरण ), वेंकटेश्वर प्रेस ( १९०० )। रभसनन्दि--कारकसम्बन्धोद्योत, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर ( वि०
सं० २०१३ )। रामचन्द्र दीक्षित-प्रक्रियाकौमुदी ( विट्ठलकृत प्रसाद सहित ), कमलाशंकर प्राण
शंकर त्रिवेदी संपा०, २ खण्ड, बम्बई - संस्कृत-प्राकृत सीरिज ( १९२५ ) । रामाज्ञा पाण्डेय--व्याकरणदर्शनभूमिका, सरस्वती-भवन, काशी ( १९५४ )। वररुचि--वाररुचसंग्रह ( नारायण कृत दीपप्रभा-सहित ), संपा०- गणपति शास्त्री,
त्रिवेन्द्रम् ( १९१३ )। विश्वनाथ-न्यायसिद्धान्तमुक्तावली ( नृसिंहदेवशास्त्रिकृत प्रभासहिता ), मेहरचन्द्र ___ लक्ष्मणदास, लाहौर ( १९२९ )। विश्वेश्वरसूरि-व्याकरणसिद्धान्तसुधानिधि, चौखम्बा ( १९१४-२५ )। वोपदेव-मुग्धबोध व्याकरण ( दुर्गादास विद्यावागीश तथा रामतर्कवागीश की ___टीकाओं से युक्त ) कलकत्ता ( १९०२ ) । शरणदेव-दुर्घटवृत्ति, गणपतिशास्त्रि संपा०, त्रिवेन्द्रम् ( १९०९ )। शर्ववर्मा-कातन्त्र ( दुर्गसिंहकृत वृत्ति), बिब्लियोथिका इंडिका, कलकत्ता (१८७६) । शाकटायन ( जैन )--शाकटायन व्याकरण, अभयचन्द्रसूरि कृत प्रक्रिया सहित, बम्बई
(१९०७ )। हेमचन्द्र-हेमप्रकाश महाव्याकरण ( विनयविजय गणि ), बम्बई (१९९४ वि०सं०) ।
हिन्दी-बंगला कपिलदेव द्विवेदी--अर्थविज्ञान और व्याकरणदर्शन, इलाहाबाद ( १९५१ )। गुरुपद हाल्दार -व्याकरणदर्शनेर इतिहास ( प्रथम खण्ड ); बंगला; कालीघाट
कालिका-ग्रन्थमाला, कलकत्ता, वंगाब्द-१३५० ( १९४४ ई० ) । ( पृ० २५२
३३२ कारक-विचार )। चारुदेव शास्त्री-व्याकरण चन्द्रोदय, मोतीलाल बनारसीदास ( ३ खण्ड ) । बलदेव उपाध्याय-भारतीय दर्शन, काशी ( १९४८ )।

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