Book Title: Sanskrit Vyakaran Me Karak Tattvanushilan
Author(s): Umashankar Sharma
Publisher: Chaukhamba Surbharti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 300
________________ २८० संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन क्रिया के द्वारा जिसे प्राप्त करने की इच्छा की जाय वह भी अपादान है । जैसे'यवेभ्यो गां वारयति' ( जौ के खेत में जाने से गाय को रोकता है ) । यहाँ गौ के वारण का अर्थ है उसकी प्रवृत्ति का विघात करना । पतंजलि 'माषेभ्यो गां वारयति' यह उदाहरण देकर ईप्सित की व्याख्या करते हैं । जिस व्यक्ति के पास माष ( उड़द ) हो, गाय नहीं - उस व्यक्ति को माष ईप्सित हो सकते हैं, किन्तु जिसके पास केवल गाय है, माष नहीं - उसके लिए तो गाय ही ईप्सित है । उस व्यक्ति को माष कैसे ईप्सित हो सकते हैं ? किन्तु वास्तव में उसे भी माष ईप्सित ही है, चूंकि वह गायों का उससे वारण करता है अतः माष उसका ईप्सित तो है ही । स्थिति यह है कि वारण क्रिया के द्वारा परकीय होने पर भी माषों को वारणकर्ता ईप्सित समझता है। कि इनका नाश न हो। इसीलिए अपनी गायों को वह उनसे अलग करता है' । अभिप्राय यह है कि यहाँ 'ईप्सित' का अर्थ है 'जिसे वारण क्रिया के द्वारा प्राप्त करना अभीष्ट हो' । इसी आधार पर भाष्यकार 'कूपादन्धं वारयति' में कूप को ईप्सित सिद्ध करते हैं । वारणकर्ता यह देखता है कि कहीं अन्धा कूप में न जा पड़े, अतः वारण - क्रिया का ईप्सित कूप ही है। जिस प्रकार गायों के वारण में शस्य - विनाश को ध्यान में रखकर सोचा जाता है कि कहीं गायें माष के खेतों में न चली जायँ उसी प्रकार यहाँ अन्धे के विनाश को ध्यान में रखा जाता है । भाष्यकार प्रकारान्तर से भी कूप को ईप्सित सिद्ध करते हैं । तदनुसार वारणकर्ता को कूप ईप्सित नहीं, अन्धे को है । वास्तव में यह व्याख्या सूत्र का अर्थ स्पष्ट करती है कि वारण क्रिया के कर्म का ईप्सित अपादान होता है । अन्धे को कुछ दिखलायी नहीं पड़ता, इसलिए उसे जैसे कूपेतर स्थान ईप्सित है, वैसे ही कूप भी है । उसे क्या पता कि वह कूप में जा रहा है कि सड़क पर दोनों ही उसके लिए समान रूप से ईप्सित है । 'अग्नेर्माणवकं वारयति' में माणवक ( कर्म ) को ईप्सित होने के कारण अपादान की प्राप्ति का प्रसंग होने पर कह सकते हैं कि कर्मसंज्ञा परवर्तिनी होने के कारण अपादान को रोक लेगी । किन्तु ऐसी स्थिति में अग्नि में भी तो अपादान का बाध हो जायगा । इससे बचने के लिए सुझाव दिया गया है कि कर्म का जो ईप्सित हो अथवा ईप्सित का भी ईप्सित हो वही अपादान है - ऐसा लक्षण करें । कात्यायन इस संकट से बचाते हैं कि ऐसी स्थिति नहीं आ सकती, क्योंकि कर्म के लक्षण में १. " तत्र वारणक्रियया परकीया अपि माषा वारयितुमिष्टा भवन्ति, 'मा नशन्नेते' इत्येतेभ्योऽसौ गा वारयति" । — कैयट २, पृ० २५१ २. 'ईप्सित इत्यनेन कर्मणा कर्तृमात्रस्याक्षेपान्निवार्यमाणस्यान्धस्य गमनादिक्रियया कूप आप्तुमिष्टो भवतीति प्रवर्ततेऽपादानसंज्ञा' । - कैयट २, पृष्ठ २५१ ३. 'तस्माद् वक्तव्यम् – कर्मणो यदीप्सितमिति । ईप्सितेप्सितमिति वा' । 1 - महाभाष्य, खंड २, पृ० २५२

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344