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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्वानुशीलन
( ६ ) औपचारिक-उपचार का अर्थ है एक स्थान में विद्यमान सम्बन्ध का दूसरे स्थान पर आरोप । यथा-'अङगुल्यग्रे करिणां शतम्' । 'अङगुल्यग्राभिन्नाश्रयक आत्मधारणानुकूल: करिसम्बन्धशताभिन्नाश्रयको वर्तमानो व्यापारः' । हाथी और भूमि का आधाराधेयभाव अंगुलि के अग्रभाग पर आरोपित है। यह भी औपश्लेषिक ही है । लघुभाष्यकार भी अतिरिक्त तीनों भेदों को औपश्लेषिक में अन्तर्भूत करने के पक्षपाती हैं।
इस प्रकार तीनों अधिकरणों को ही अन्तिम वर्गीकरण मानने में कोई दोष नहीं, क्योंकि औपश्लेषिक की व्याप्ति बहुत अधिक है।