________________
सम्प्रदान- कारक
२३९
( ३ ) वराय कन्यां ददाति - कन्या का पिता जब उसके विवाह के समय कन्यादान करता है, तब उसमें भी दानक्रिया की औपचारिकता पूरी हो जाती है तथा इसलिए दान का मुख्य अर्थ ही लिया जाता है, गौण नहीं । यद्यपि इसमें पिता तथा पुत्री के मध्य जन्य-जनक-सम्बन्ध नहीं टूटता, किन्तु उनमें स्वस्वामिभाव की निवृत्ति तो हो ही जाती है और यह सम्बन्ध वर-कन्या के बीच स्थापित हो जाता है ( हेलाराज, वहीं ) । सारस्वतकार यहाँ कन्या के गोत्र तथा ज्ञातित्व के सद्यः परिवर्तन के कारण पिता की स्वत्वनिवृत्ति मानते हैं । इसलिए वर की सम्प्रदानता एक तथ्य है ।
( ४ ) प्रदीयतां दाशरथाय मैथिली ( वा० रामायण, यु०९।२१ ) - यहाँ रावण का सीता पर कोई वैध अधिकार नहीं है कि वह राम को दान के रूप में उन्हें समर्पित करे । इससे यह कल्पना हो सकती है कि दान के निमित्त कर्ता को वास्तविक अधिकार नहीं रहने पर भी दान-क्रिया की सिद्धि हो सकती है, यदि स्वत्वनिवृत्ति और परस्वत्वापादन की उपर्युक्त औपचारिकता का निर्वाह होता हो । किन्तु वैयाकरणों के सम्प्रदाय में यह असह्य है । इसीलिए कातन्त्रटीका में सुषेण कविराज विवक्षा - शास्त्र का आश्रय लेकर इसका समर्थन करते हैं । रावण को वैध अधिकार वस्तुतः नहीं रहने पर भी वक्ता को वैसा कहने की इच्छा है २ । वास्तव में वक्ता कहना चाहता है कि सीता राम को श्रद्धापूर्वक लौटा दी जाय । विव़क्षा के अधीन स्वत्व के अन्य उदाहरण भी रामायण में हैं
'धनानि रत्नानि विभूषणानि वासांसि दिव्यानि मणींश्च चित्रान् । सीतां च रामाय निवेद्य देवीं वसेम राजन्निह वीतशोकाः ' ॥
- वा० रा० यु० १५।१४ प्रश्न है कि 'दान' का मुख्यार्थ यहाँ है या नहीं ? व्यवहार में हम देखते हैं कि चुराई हुई वस्तु पर अपहर्ता का नियंत्रण तथा अधिकार भी रहता है । अतः रावण का सीता पर तब तक के लिए तो अधिकार है - ऐसा मान लें । किन्तु धर्मशास्त्र के अनुसार जिस पदार्थ को उसके स्वामी ने बेचा नहीं हो ( चुराया गया या न्यास के रूप में रखा हुआ पदार्थ हो ) वह अपने पूर्वस्वामी के पास चला जाता है ( ' द्रव्यमस्वामिविक्रीतं पूर्वस्वामिनमाप्नुयात् ' ) । कुछ लोग यहाँ 'अस्वामी' का अर्थ अयोग्य या 'अवैध स्वामी' लेते हैं जिससे 'पूर्व' शब्द का विशेषणत्व सुरक्षित रहे । तदनुसार अवैध स्वामी यदि उसे बेच भी दे तो भी वह पूर्वस्वामी ( मूलस्वामी ) का ही रहता है, चोर के द्वारा बेचा हुआ पदार्थं मूलस्वामी को दिलाया जाता है । परिणामतः
१. विवाह के पर्याय के रूप में भी इसीलिए सम्प्रदान- शब्द का प्रयोग हुआ है; यथा – 'सम्प्रदानसमयेऽर्थहारिका ( दारिका ) ' । - ऐ० ब्रा० ३३।१।५ सायण ०
-
२. 'रावणस्य मैथिल्यां स्वत्वाभावेऽपि स्वत्वविवक्षया प्रयोगस्य साधुत्वम्' । - व्या० द० इति० पृ० ३०२ पर उद्धृत