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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्वानुशीलन
भाष्य की इस अतिरिक्त कारिका में वर्तमान. 'च' शब्द का उपयोग जि आदि धातुओं के संग्रहार्थ करते हुए अन्य उदाहरण भी देते हैं - शतं जयति देवदत्तम् । शतं मुष्णाति देवदत्तम् । शतं दण्डयति देवदत्तम् । तात्पर्य यह है कि यदि णिजन्त प्रयोगवाले कर्म को छोड़ भी दें तो कैयट पूर्वोक्त आठ धातुओं के अतिरिक्त छह अन्य धातुओं को ( कुल १४ ) द्विकर्मक मानते हैं । माधव अपनी धातुवृत्ति में 'च' शब्द से कुछ दूसरे धातुओं का भी संग्रह करते प्रतीत होते हैं -
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जयतेः कर्षते मंन्थेर्मुषेर्दण्डयतेः पचेः तारेग्रहस्तथा मोचेस्त्याजेर्दीपेश्च सङ्ग्रहः ॥ कारिकायां च शब्देन सुधाकरमुखैः कृतः " ।
इस सूची में हमें कृष्, मन्थ् तथा पच् - ये मूल धातु एवं तारि ( तू ), ग्राहि (ग्रह), मोचि ( मुच ), त्याजि ( त्यज् ) तथा दीपि - ये णिजन्त धातु नवीनतया प्राप्त होते हैं । इनके उदाहरण क्रमशः इस प्रकार हैं - कर्षति शाखां ग्रामम् ( गाँव तक शाखा को खींच कर ले जाता है ) । क्षीरनिधि सुधां मथ्नाति ( समुद्र से अमृत का मन्थन करता है ) । तण्डुलानोदनं पचति । तारयति ( पार करता है ) कपीन् समुद्रम् । ग्राहयति बटूनिदम् । मोचयति त्याजयति वा कोपं देवदत्तम् । दीपयति ( व्याख्या करता है ) शास्त्रार्थं शिष्यान् । माधव की इस सूची पर पाणिनि-तन्त्र में कोई विशेष आपत्ति नहीं की जाती, यद्यपि इसमें गिनाये णिजन्त धातुओं का विशद विवेचन दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ में किया है ( पृ० १३१-३, खण्ड २ ) ।
अस्तु, हमें यहाँ तक आकर कुल १७ मूल धातु मिलते हैं, जो द्विकर्मक कहे जा सकते हैं – दुह्, याच्, रुध्, प्रच्छ, भिक्षु, चि, ब्रू, शास्, नी, वह्, ह, जि, मुष्, दण्ड्, कृष्, मन्थ् तथा पच् । इन्हे रामचन्द्र ने दो राशियों में विभक्त किया है
'ह्याच्यर्थधिप्रच्छिचिशासुजि- कर्मयुक् । नीहृकुष्मन्यव दण्डग्रहमुष्पच -कर्म भाक्'
भट्टोजिदीक्षित इस सूची में दो दोष पाते हैं - ( १ ) ग्रह धातु द्विकर्मक नहीं है, किन्तु रामचन्द्र ने उसे यहाँ स्थान दिया है । 'जग्राह द्युतरुं शक्रम्' यह उदाहरण भी असंगत है, क्योंकि इन्द्र से कल्पतरु ले लिया -- इसी अर्थ की प्रतीति होती है । पत्युत पराक्रम का अतिशय दिखलाने के लिए 'जहार' क्रिया का प्रयोग उचित ST | ( २ ) अन्य धातुओं में कोई दोष नहीं, किन्तु उनका विभाजन आपत्तिजनक है । कर्मवाच्य की प्रक्रिया में प्रश्न होता है कि लकार, कृत्य, क्त तथा खलर्थ ( भाव और कर्म में होनेवाले ) प्रत्यय किस कर्म में होंगे - प्रधान कर्म में या अकथित में ?
१. माधवीयधातुवृत्तिः ( पृ० ३८ ) । श० कौ० २, पृ० १३१ में उद्धृत | २. प्रक्रियाकीमुदी, बम्बई ( १९१५ ), पृ० ३८८ ( खण्ड १ ) । ३. शब्दरत्न, पृ० ४९० ।