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क्रिया तथा कारक
ओर फल-रूप धात्वर्थ को धारण करनेवाले कर्म में भी क्रिया समवेत रहती है । इस प्रकार ये दोनों ही क्रिया के स्वाश्रय हैं जिनमें वह साक्षात् स्थित है, समवेत है। ये क्रिया की निप्पत्ति में मुख्यरूप से सहायक होते हैं। करणादि दूसरे कारक धात्वर्थभूत व्यापार या फल की सहायता कर्ता या कर्म के माध्यम से करते हैं, अत: गौणरूप से कारक हैं अथवा वे क्रिया के स्वाश्रय नहीं अपितु पराथय हैं । अतएव कारिका में शक्ति ( सामर्थ्य ) को साधन कहते हुए क्रिया के इन दोनों रूपों की निष्पत्ति का ध्यान रखा गया है । स्वाश्रय में समवेत क्रिया की निष्पत्ति हो या आश्रयान्तर ( करणादि ) में समवेत क्रिया की निष्पत्ति हो, दोनों ही स्थितियों में द्रव्य की क्रिया-निर्वतिका शक्ति साधन ( कारक ) है।
इस साधनरूप शक्ति को विभिन्न विभक्तियाँ प्रकाशित करती हैं। उदाहरण के लिए- 'मृगो धावति' इस वाक्य में दौड़ने की क्रिया का आश्रय मृग है, जिसमें कर्तृशक्ति दिखलायी जा रही है--इसे प्रथमा विभक्ति प्रकट कर रही है । यदि द्रव्य ही कारक या साधन ( शक्ति ) होता तो 'स्थाली पचति, स्थालीं पचति, स्थाल्या पचति, स्थाल्यां पचति'-इन विभिन्न कारकरूपों में जहाँ एक ही द्रव्य स्थाली का प्रयोग हुआ है, वहाँ द्रव्य की समानता के कारण सर्वत्र कारक भी समान होता। परन्तु पाकक्रिया के प्रति स्थाली ( द्रव्य ) की अलग-अलग शक्तियों की अभिव्यक्ति उन वाक्यों में विवक्षित है, अतः कारक भी अलग-अलग हैं। इसलिए भी द्रव्य और शक्ति का पार्थक्य स्पष्ट होता है। तदनुसार द्रव्य कारक नहीं है, अपितु द्रव्यों की शक्ति कारक है। इसे ही व्यवहार में द्रव्यों का क्रिया-सम्बन्ध कहा जाता है। किन्तु सम्बन्ध अतिव्यापक शब्द है, अतः इसे सीमित करके शक्तिरूप कहना अधिक संगत है-कारक का यही शास्त्रीय अर्थ है । ___ यह सत्य है कि द्रव्य में शक्ति रहती है, अत: द्रव्य के आकार-प्रकार के अनुसार शक्तियों का स्वरूप भी पृथक् होगा। कुठार, दात्र तथा कृपाण-इन तीनों से छेदनक्रिया सम्पन्न तो होगी, किन्तु इन क्रियाओं का रूप एक-दूसरे से भिन्न होगा। इसी प्रकार द्रव्य के देश-काल के आधार पर भी क्रियानिष्पत्ति की प्रक्रिया में भेद होता है। तथापि द्रव्यों की सभी शक्तियों को छह रूपों में रखा जा सकता है । साधन के प्रसंग में इससे अधिक शक्तियां नहीं होती, क्योंकि क्रिया की सिद्धि के लिए वास्तव में इतनी ही शक्तियाँ काम करती हैं । भले ही कुठारादि विभिन्न द्रव्यों के द्वारा सम्पन्न होनेवाली छिदि-क्रिया में अन्तर प्रतीत होता हो, किन्तु यदि क्रिया का सम्पूर्णतया संकलित
१. 'तत्र कर्तकर्मणोः क्रिया समवतीति स्वाश्रयसमवेतक्रियानिष्पत्ती तयोः कारकता । करणादीनां तु पराश्रयसमवेतायां क्रियायां साधनभावः । न हि करणादिषु क्रिया समवैति'।
–हेलाराज, पृष्ठ २३१ २. 'द्रव्याकारादिभेदेन ताश्चापरिमिता इव । . दृश्यन्ते तत्त्वमासां तु षट्शक्ती तिवर्तते' । -वा०प०३१७।३६
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