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कर्तृ कारक
१११ 'अकुरो जायते' का विवेचन शब्द-जगत् की विचित्रता का दूसरा उदाहरण हमें 'अङकुरो जायते' के प्रयोग में मिलता है, जिस पर भर्तहरि दार्शनिक दृष्टि से कार्य-कारण सिद्धान्त का विवेचन भी करते हैं। वाक्यपदीय के सम्बन्ध-समुद्देश में एक स्थान पर वे उपचार-सत्ता ( लाक्षणिक प्रयोग ) की पुष्टि करने के लिए मुख्यसत्ता ( वास्तविक सत्ता ) को असम्भव बतलाते हैं। 'जायते' में जन्म का अर्थ होता है-वस्तु के स्वरूप की प्राप्ति ( आत्मलाभ )। उसमें तीन तत्त्वों की आवश्यकता होती है- लब्धा ( जन्म लेने वाले ) कर्ता की, लभ्य कर्म ( वस्तु-स्वरूप ) की तथा लाभात्मक क्रिया की। ये तीनों ही सत्पदार्थ से सम्बन्ध रखनेवाले होते हैं । सत् वह है जो पहले से स्वरूपलाभ किया हुआ है ( लब्धात्मा हि सन्नुच्यते ) अर्थात् सत् का पुनः आत्मलाभ सम्भव नहीं । फलतः सत्-पदार्थ के जन्म की उपपत्ति नहीं हो सकती। दूसरी ओर, असत्पदार्थ के भी जन्म की बात नहीं की जा सकती, क्योंकि स्वरूपलाभ के ही अर्थ में जनन-क्रिया होती है और सर्वथा असत्-पदार्थ स्वरूपलाभ क्या कर सकेगा?
यह स्वीकार करना अनिवार्य है कि वस्तु कारणावस्था में शक्तिरूप में अवस्थित है तथा किसी अपूर्व अंश का लाभ करती है, जिसे जन्म कहते हैं । तदनुसार जिस रूप के आधार पर वस्तु को सत् कहते हैं उस रूप के द्वारा जन्म नहीं होता और जिस रूप से जन्म होता है ठीक उसी रूप के कारण, वह सत् नहीं कहला सकतायह 'अङ्कुरो जायते' के प्रयोग की सबसे बड़ी कठिनाई है । जन्म की मर्यादा रखकर असत् को स्वीकार करते हैं तो धात्वर्थ में कर्तृत्व की सिद्धि नहीं होती तथा प्रत्यय का विरोध भी होता है और यदि कर्तृत्व की रक्षा करते हुए सत् को स्वीकार करें तो जन्मात्मक धात्वर्थ का विरोध होगा। तात्पर्य यह है कि 'जायते' की उपपत्ति अंकुर को असत् मानकर होगी ( ऐसी स्थिति में अंकुर कर्ता नहीं हो सकेगा ), अथवा सत् मान कर अंकुर की ही उपपत्ति होगी, किन्तु उसका सम्बन्ध 'जायते' क्रिया से नहीं हो सकेगा । फलस्वरूप असत् या सत् दोनों ही पक्षों में स्थिति असाध्य है । यह इसलिए होता है कि हम मुख्य या बाह्य सत्ता का आश्रय लेते हैं । उपचार-सत्ता स्वीकार करने पर अनुपपत्ति का प्रश्न नहीं उठता।
उपचार-सत्ता के जगत् में यह आवश्यक नियम नहीं है कि सर्वथा सिद्ध पदार्थ ही जन्म लेता है या सर्वथा असद्रूप वाला पदार्थ ही उत्पन्न होता है । वहाँ तो सत् हो या असत्, पूर्व तथा अपर अवस्थाओं पर आश्रित पदार्थ का ( जो सत्ता प्राप्त करने के लिए उन्मुख हो ) जन्म समझा जाता है । इस प्रकार उत्तरवर्ती अवस्था-विशेष
१. 'आत्मलाभस्य जन्माख्या सत्ता लभ्यं च लभ्यते । ___ यदि सज्जायते कस्मादथासज्जायते कथम् ॥ -वा०प० ३।३।४३
२. 'इह सर्वात्मना परिनिष्ठितं जायत इति न व्यपदिश्यते । नापि सर्वात्मनाऽसद्रूपम् । अपि तु सदसदूपमाश्रितपूर्वापरावस्थं सत्तासादनोन्मुखं वस्तु 'जायते' शब्दविषयः"।
-हेलाराज ३।३।४५