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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन
Statusभट्ट ने वैयाकरणभूषण में ( पृ० १०८ ) किसी कारक- परीक्षा नामक ग्रन्थ में निर्दिष्ट कर्तृभेद का खण्डन किया है। उक्त परीक्षाकार ने अभिहित तथा अनभिहित इन दो अतिरिक्त कर्तृभेदों को स्वीकार कर कर्ता के कुल पाँच भेद किये थे । भूषणकार इसे भ्रान्ति बतलाते हैं, क्योंकि उक्त तीनों भेदों में ही अभिधान तथा अनभिधान होते हैं। तीनों के साथ व्यावृत्ति न होने के कारण इन्हें भेदान्तर मानना असंगत है।
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अन्यथा तीनों के ये दो-दो भेद मानने पर छह भेद हो जायेंगे । यही नहीं, कर्मकारक के भेदों में भी इन्हें जोड़ने का प्रश्न उपस्थित होने पर कर्म की सप्तविधता के स्थान पर नवविधता स्वीकार करनी पड़ेगी । अतएव सभी दोषों से रहित कर्ता का त्रैविध्य ही सिद्धान्त है ।