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१८-सम्यक्त्वपराकम (३) सम्बन्ध प्रवाह रूप से अनादि होने पर भी विशेष की अपेक्षा अनादि नहीं है। गगा नदी के किनारे खडे होकर चार दिन पहले जो जलधारा देवी थी, वही जलधारा चार दिन बाद भी देखी जाये तो वह पहले जैसी ही दिखाई देगी, मगर वास्तव में चार दिन पहले जो जलधारा देखी गई थी वह तो कभी की चली गई है। पानी की धारा लग तार बहती रहती है, इसी कारण उसका सम्बन्ध टूटा हुआ मालूम नही होता, बल्कि ऐसा जान पडना है कि यह वही जलधारा है जो चार दिन पहले देवी श्री। मगर वस्तुत. वह जलधारा पहले की नही है । फिर भी उपचार से कहा जाता है कि यही वह जलधाग है। वारतव मे जो जलधारा पहले देखी गई थी वह तो उसी समय चली गई है । वर्तमान में तो नवीन ही जलवारा है, जो पहले नही देखी गई थी। इसी प्रकार मात्मा के साथ पहले जिन कमी का सम्बन्ध हुआ था, वे कमी के भोगे जा चुके हैं, मगर नवीन-नवीन कर्म सदैव आते और बँधते रहते है, इसी कारण यह कहा जाता है कि जीव और कम का सम्बन्ध अनादिकालीन है । शास्त्र के कथनानुसार कर्म की आदि भी है और यन्त भी है, परन्तु जीव के साथ कम एक के बाद दूसरे लगातार ते रहते हैं । इसी कारण जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादिकालीन है ।
आगका की जा सकती है कि कर्म जव लगातार माते और वन्धते ही रहते है तो जीव कर्मरहित किस प्रकार हो सकता है ? इसका समाधान यह है कि कर्मप्रवाह को रोक देने से जीव कमरहित हो जाता है। नदी के ऊपर से आने वाले प्रवाह को रोक दिया जाये तो वारा टूट जाती