Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ गतिया समकित : कल हमने देखा था कि जीव एक गति के शरीर को छोड़कर, दूसरी गति के शरीर में चला जाता है। आज हम समझेंगे कि यह गति क्या प्रवेश : भाईश्री ! थोड़ा आसान करके समझायें, क्योंकि यह शब्द सुनने में ही नये से लगते हैं। समकित : हाँ बिल्कुल ! जीव की स्थूल-पर्यायों को गति कहते हैं। प्रवेश : जीव की स्थूल-पर्याय मतलब ? समकित : मोटे तौर पर' संसार में जीव चार स्थूल-पर्यायों में पाये जाते हैं। इनको ही गति कहते हैं। प्रवेश : वे गतियाँ कौन-कौन सी होती हैं ? समकित : गतियाँ चार होती हैं: 1. मनुष्य 2. तिर्यंच 3. नरक 4. देव प्रवेश : अच्छा ! जैसे हम मनुष्य हैं, पशु-पक्षी आदि तिर्यंच हैं ? समकित : हम मनुष्य गति के शरीर में हैं, इसलिए हम मनुष्य कहलाते हैं। असल में तो हम सब जीव यानि कि आत्मा हैं। प्रवेश : और तिर्यच? समकित : पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े आदि तिर्यंच गति के शरीर में हैं, इसलिए वे तिर्यंच कहलाते हैं। हैं तो वे भी हमारी तरह जीव (आत्मा) ही। 1.broadly