Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 30 समकित-प्रवेश, भाग-2 झूठे रास्ते में लग जाते हैं और अपनी आत्मा से व आत्मा का ज्ञान देने वाले सच्चे देव-शास्त्र-गुरु से दूर हो जाते हैं। प्रवेश : और कषाय ? समकित : कषाय- आत्मा में लीन नहीं होना और दूसरों की तरफ देख-देख कर राग-द्वेष यानि कि क्रोध, मान, माया व लोभ करते रहना यह कषाय प्रवेश : मतलब कषाय चार होती हैं ? समकित : हाँ, कषाय चार होती हैं: 1. क्रोध' 2. मान 3. माया' 4. लोभ प्रवेश : कृपया एक-एक कर के समझाईये ? समकित : ठीक है, सुनो ! जब हम अपने में लीन नहीं होते, तब दूसरों में ही लीन रहते हैं। यानि कि दूसरों की तरफ देख-देख कर उनको अपने हिसाब-से चलाना चाहते हैं और यदि वे हमारे हिसाब से न चले तो हम उनपर क्रोध (गुस्सा) करते हैं। उनको अपने हिसाब से चलाने के लिये छल-कपट (मायाचारी) करते हैं। यदि वे हमारे हिसाब से चलें तो हम मान (घमंड) करते हैं कि देखो सब कुछ हमारे हिसाब से ही चलता है और आगे भी इसी प्रकार से चलता रहे ऐसा लोभ करते हैं। प्रवेश : किस कषाय के फल से कौन-सी गति होती है ? समकित : सामान्यतयः तीव्र क्रोध के फल में जीव को नरक गति में जाना पड़ता है। क्रोधी व्यक्ति, जो सभी पर चीखते-चिल्लाते रहते हैं। न खुद शांति-से रहते हैं और न ही दूसरों को रहने देते हैं, वे नरक गति में जन्म लेते हैं। तीव्र मायाचारी के फल से जीव को तिर्यंच गति में जाना पड़ता है। मायावी व्यक्ति रात-दिन मन में कुछ, वचन में कुछ और दिखावा कुछ ऐसी कुटिलता करते रहते हैं। 1. anger 2.pride 3.deceit 4.greed 5.generally 6.intense 7.craftiness