Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 226 समकित-प्रवेश, भाग-7 स) द्रव्य प्रतिक्रमणः जो अपने ग्रहण करने लायक नहीं हैं ऐसे भोजन, वसतिका व उपकरण आदि को ग्रहण कर लेने पर प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। द) क्षेत्र प्रतिक्रमणः जो अपने जाने लायक नहीं है ऐसे गंदे, हिंसा-पोषक, मिथ्यात्व-पोषक व संयम में बाधक स्थान में चले जाने पर प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। ड) काल प्रतिक्रमणः असमय (अयोग्य समय) में गमन आदि करने या फिर आवश्यक क्रियाओं के समय गमानादि करने के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। फ) भाव प्रतिक्रमणः समस्त शुभ-अशुभ भावों का प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान (त्याग) करना यानि कि शुद्ध-भावों को प्रगट करना भाव (निश्चय) प्रतिक्रमण है। भाव प्रतिक्रमण होने पर ही सभी प्रतिक्रमण सच्चे कहलाते हैं और ध्यान रहे प्रतिक्रमण बिना प्रत्याख्यान के सार्थक नहीं होता। प्रवेश : समय के आधार पर प्रतिक्रमण के भेद कोने से हैं ? समकित : 2. समय के आधार पर प्रतिक्रमण के भेदः अ) दैवसिक प्रतिक्रमणः पूरे दिन में लगे दोषों के लिए प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। ब) रात्रिक प्रतिक्रमणः पूरी रात में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। स) साप्ताहिक प्रतिक्रमणः पूरे सत्पाह में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। द) पाक्षिक प्रतिक्रमणः पूरे पंद्रह दिन (पक्ष) में लगे दोषों के लिये प्रतिक्रमण कर प्रत्याख्यान करना। 1.accept/adopt 2.meaningfull 3.week