Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 255 2. मध्यम अंतरात्माः स्वयं को जानकर, मानकर, स्वयं में दूसरे स्तर की लीनता करने वाले पाँचवें गुणस्थान वाले व्रती श्रावक और तीसरे स्तर की लीनता करने वाले छठवें गुणस्थान से लेकर ग्यारहवें गुणस्थान वाले मुनिराज मध्यम अंतरात्मा हैं। 3. उत्तम अंतरात्माः स्वयं को जानकर, मानकर, स्वयं में चौथे स्तर की (पूर्ण) लीनता करने वाले पूर्ण वीतरागी क्षीण कषाय मुनि उत्तम अंतरात्मा हैं। प्रवेश : ग्यारहवें गणस्थान वाले उपशांत कषाय मुनि भी तो बारहवें गणस्थान वाले क्षीण कषाय मुनि की तरह स्वयं में पूर्णरूप से लीन हैं फिर उनको मध्यम अंतरात्मा में क्यों रखा, जबकि बारहवें गुणस्थान वाले क्षीण कषाय मुनि को उत्तम अंतरात्मा में रखा है ? समकित : ग्यारहवें गणस्थान वाले उपशांत कषाय मनि भले ही स्वयं में पर्णरूप से लीन हैं, पूर्ण वीतरागी हैं लेकिन उनकी यह लीनता/वीतरागता अस्थाई है। जबकि बारहवें गुणस्थान वाले क्षीण कषाय मुनि की पूर्ण लीनता/वीतरागता स्थाई है। यह तीनों ही प्रकार के अंतरात्मा मोक्षमार्ग में चलने वाले हैं। शीघ्र ही अंतरात्मा से परमात्मा बन जायेंगे यानि कि मोक्ष को पा लेंगे। प्रवेश : और परमात्मा ? समकित : अरिहंत भगवान यानि कि तेरहवें गणस्थान वाले सयोग-केवली जिन व चौदहवें गुणस्थान वाले अयोग-केवली जिन और गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान परमात्मा हैं। इसप्रकार परमात्मा के दो भेद हो जाते हैं: 1. सकल परमात्मा 2. निकल परमात्मा 1. सकल परमात्माः कल का मतलब होता है-शरीर। इसप्रकार सकल सयोग और अयोग केवली जिन यानि कि अरिहंत भगवान शरीर सहित होने से सकल परमात्मा हैं। 1.temporary 2. permanent