Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 298
________________ बारह भावना समकित : आज हम बारह भावना की चर्चा करने जा रहे हैं। निश्चय से भावना का अर्थ होता है चारित्र यानि कि आत्मलीनता। अतः आत्मलीनता ही निश्चय भावना है। निश्चय भावना की भावना भाना (शुभ राग) व्यवहार भावना है। सम्यकदृष्टि श्रावक निश्चय भावना सहित व्यवहार भावना भाते हैं यानि कि बारह प्रकार से संसार-शरीर-भोगों से विरक्त होकर आत्मलीनता बढ़ाने की, मुनिदशा प्रगट करने की भावना भाते हैं। प्रवेश : क्या बारह-भावना सिर्फ सम्यकदृष्टि ही भा सकते हैं ? समकित : नहीं ऐसा नहीं है। मिथ्यादृष्टि भी सम्यकदर्शन यानि कि आत्मज्ञान, श्रद्धान व लीनता प्रगट करने के लिये बारह भावना भाते हैं लेकिन सच्ची व्यवहार बारह-भावना तो निश्चय भावना होने पर ही होती हैं। प्रवेश : वह बारह-भावना कौन-कौन सी हैं ? समकित : 1. अनित्य भावना 2. अशरण भावना 3. संसार भावना 4. एकत्व भावना 5. अन्यत्व भावना 6. अशुचि भावना 7. आश्रव भावना 8. संवर भावना 9. निर्जरा भावना 10. लोक भावना 11. बोधिदुर्लभ भावना 12. धर्म भावना, ये बारह भावना हैं। प्रवेश : अनित्यता (क्षणभंगुरता),अशरणता', संसार की असारता, अशुचिता और आश्रव की भावना भाने से तो दुःख ही होगा? समकित : वास्तव में तो बारह भावनाओं में अनित्यता, अशरणता, संसार, अशुचिता और आश्रव की भावना नहीं, मात्र उनका ज्ञान व उनसे वैराग्य उत्पन्न कराया गया है। भावना (दृष्टि व लीनता संबंधी) तो नित्य (शाश्वत), शरणभूत, संसारातीत, परम्-शुचि (परम्-पवित्र) और निराश्रवी (मोह, राग-द्वेष से रहित) शुद्धात्मा की ही भायी गयी 1.world-body-physical pleasures 2.detached 3.momentariness 4.shadowlessness 5.impurity

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