Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री, प्रायार्य-आचार्य अकलंक देव जैन न्याय महाविद्यालय ध्रुवधाम, बाँसवाड़ा (राज.) लिखते हैं: प्रो. पुनीत जी से मेरा व्याक्तिगत परिचय खनियाँधाना प्रशिक्षण शिविर के दौरान हुआ, उस प्रथम परिचय में जो तत्व चर्चा हुई उससे ही इस युवा और उत्साही व्यक्तित्व की अंतरंग भावना और तत्व के प्रति समर्पण की झलक स्पष्ट हो गई थी। पुनीत जी द्वारा लिखित “समकित-प्रवेश" जैनागम के बेसिक रहस्यों को उद्घाटित करने वाली आधुनिक हिंग्लिश (हिन्दी+अंग्रजी) पीढ़ी के पाठकों के लिए आदर्श प्रस्तुत करेगी। यद्यपि पूर्णतः इस कृति को नहीं पढ़ पाया, किन्तु बानगी को देखकर उत्तम माल का परिचय सहज हो गया। जितना मैं जानता हूँ, पुनीत जी का आगमिक और अध्यात्मिक अध्ययन व्यवस्थित, स्पष्ट और प्रायोगिक है। सभी प्रकार के बाल, यूवा व वृद्धजनों से अनुरोध है कि इस कृति के अध्ययन का लाभ उठायें व जन-जन का विषय बनायें। लेखक को इस उत्तम काम के लिए शुभकामना और धन्यवाद ! डॉ. विपिन शास्त्री, प्राचार्य श्री महावीर विद्यानिकेतन, नागपुर (महा.) लिखते हैं: जब पूरी दुनियाँ में भौतिकता की चकाचौंध का बोलबाला हो तब ऐसा लगता है कि पता नहीं आगामी पीढ़ी के पास तत्त्वज्ञान पहुँचेगा भी या नहीं। लेकिन जब प्रो. पुनीत जी जैसे युवा इस क्षेत्र में आगे आकर काम करते हैं तो मन को प्रसन्नता होती है। हाल ही में उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक “समकित-प्रवेश" को सरसरी नजर से देखने का अवसर प्राप्त हुआ जिसमें भाषा की दुरूहता को दूर करते हुए सरल भाषा में विषय को परोसा गया है जिसके कारण आधे अंग्रेज, आधे हिंदी वाले पाठकों को भी सुलभता से विषय स्पष्ट हो सकता है। विभिन्न पाठों के माध्यम से क्रमिक विषय वस्तु निरूपण पुस्तक को रोचक बनाता है। जिनागम की बात कहीं भी, कोई भी कहे चूँकि मूल ग्रन्थकर्ता सर्वज्ञ परमात्मा होने से उसकी उपयोगिता पर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता है। आशा है कि लेखक व पाठक इस प्रयास से वीतरागी निराकुल मार्ग की ओर अग्रसर होंगे। श्री प्रदीप मानोरिया अशोकनगर लिखते हैं: साधर्मी भाई पुनीत जी द्वारा रचित प्रकाश्य पुस्तक “समकित-प्रवेश" का एक स्वाध्यायी के नाते अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ। प्रकाश्य पुस्तक में जिन शासन के मूलभूत सिद्धांतो को अत्यंत रोचक रीति से सरस और सारगर्भित चर्चा के द्वारा प्रस्तुत किया है। सभी सिद्धांतो के प्रतिपादन का क्रम अत्यंत व्यवस्थित रीति से इस प्रकार समाहित किया गया है सब ही विषय आगे आगे सम्बद्धता से गुथे हुये हैं अतएव वह क्रमानुसार निरूपित होने से वह निरूपण दुरूहता से दूर रहते हुये सरस और सरलता को प्राप्त हुआ है। पुस्तक की यह भी एक विशेषता है कि समस्त ही विवेचना में यथार्थ दृष्टिकोण की मुख्यता रखी गई है जिससे व्यवहार के विषयों का भी परमार्थ पक्ष स्पष्ट उजागर हुआ है। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक नई पीढ़ी के युवा वर्ग को अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होगी। वर्तमान में पूज्य गुरुदेवश्री कानजी स्वामी द्वारा जिनागम के यथार्थ भाव का उद्घाटन हुआ है उसकी धारा अविरल प्रवाहित रहे ऐसी मंगल भावना है।