Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 261
________________ 254 समकित-प्रवेश, भाग-8 समकित : हाँ, इसी भ्रम (मोह) का नाम तो संसार है, यही तो दुःख का मूल कारण है। प्रवेश : भाईश्री ! बहिरात्मा, अंतरात्मा व परमात्मा के बारे में और विस्तार से समझाईये न। गुरु : इसको हम निम्न चार्ट की मदद से समझ सकते हैं: ज्ञान पर्याय अशुद्ध पर्याय शुद्ध पर्याय बहिरात्मा ____ अंतरात्मा परमात्मा / (4) (5-11) (12) | अनंत ज्ञान 7 (13,14) (गुणस्थानातीत) मि. ज्ञान स. ज्ञान अनंत दर्शन मि. श्रद्धा | स. श्रद्धा Lजघन्य मध्यम उत्कृष्ठ | Lअनंत सुख / सकल Lनिकल अंतरात्मा अंतरात्मा | अंतरात्मा | |परमात्मा | परमात्मा चारित्र | मि. चारित्र | स. चारित्र सम्यक्त्वाचरण (अविरत | (श्रावक, | (क्षीण (अरिहंत) | (सिद्ध) सम्यक | मुनि) कषाय सकल दृष्टि) _ मुनि) यथाख्यात अनंत वीर्य श्रद्धा देश अव्याबाधत्व अवगाहनत्व सूक्ष्मत्व अगुरूलघुत्व चार्ट में हमने देखा कि पहले गुणस्थान वाले जीव मिथ्यादृष्टि होने से बहिरात्मा हैं। इसी प्रकार चौथे से बारहवें गुणस्थान तक के जीव अंतरात्मा है। अंतरात्मा को तीन भेदों में बाँटा गया है: 1. जघन्य अंतरात्माः स्वयं को जानकर, मानकर व स्वयं में पहले स्तर की लीनता करने वाले चौथे गुणस्थान वाले अविरत् सम्यकदृष्टि जीव जघन्य अंतरात्मा है। इस दशा से मोक्षमार्ग शुरु हो जाता है। 1.detail 2. help 3.stage

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