Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 266 समकित-प्रवेश, भाग-8 जैसे पुत्री नय पूरी सीता को पुत्री धर्म रूप यानि कि पुत्री ही जानेगा, पत्नी नय पूरी सीता को पत्नी ही जानेगा और माँ नय पूरी सीता को माँ ही जानेगा। इस प्रकार नयों का समूह ही ज्ञान (प्रमाण) है। नय सम्यक-एकांत हैं और नयों का समूह सम्यकज्ञान (प्रमाण) सम्यक-अनेकांत है। कुछ पर्यायवाचीः प्रमाण : सम्यकज्ञान, सम्यक-अनेकांत दुष्प्रमाण : मिथ्याज्ञान, मिथ्या अनेकांत नय : सुनय, सम्यक-एकांत | दुर्नय : कुनय, मिथ्या-एकांत प्रवेश : एकांत भी सम्यक होता है ? समकित : हाँ बिल्कुल। नय पूरी वस्तु को एक धर्म रूप ही जानता है। इसलिये एकांत है। लेकिन दूसरे धर्मों का अभाव नहीं करता बस प्रयोजनवश' उनको गौण कर देता है। इसलिये सम्यक-एकांत है। इस प्रकार सम्यक-एकांत (नयों) का समूह, सम्यक-अनेकांत (प्रमाण) कहलाता है। प्रवेश : तो फिर तो मिथ्या-एकांत और मिथ्या अनेकांत भी होते होंगे? समकित : हाँ क्यों नहीं। जो एकांत वस्तु के दूसरे धर्मों को गौण नहीं बल्कि उनका अभाव' ही कर देता है, उस एकांत को मिथ्या-एकांत कहते हैं। और मिथ्या-एकांत (दुर्नय) का समूह ही मिथ्या अनेकांत (दुष्प्रमाण) है प्रवेश : भाईश्री ! इन सभी को उदाहरण से समझाईये ना समकित : जनक की अपेक्षा सीता पुत्री ही है, राम की अपेक्षा सीता पत्नी ही है, लवकुश की अपेक्षा सीता माता ही है। यह सम्यक-एकांत यानि कि नय (सुनय) है। 1.purposefully 2.subside 3.collection 4.abolishment