Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 280 समकित-प्रवेश, भाग-8 समकित : चूँकि प्राग्भाव कहता है कि हमारी वर्तमान पर्याय का पूर्व पर्याय में अभाव है। यानि कि दोनों के बीच व्याप्य-व्यापक संबंध का अभाव होने से कर्ता-कर्म संबंध का भी अभाव होता है। यानि कि हमारी वर्तमान पर्याय, पूर्व पर्याय में कुछ भी नहीं कर सकती और पूर्व पर्याय वर्तमान पर्याय में भी कुछ नहीं कर सकती। असर', मदद, प्रेरणा आदि कुछ भी नहीं। इसलिये पूर्व में हमने कितने भी पाप किये हों लेकिन यादि वर्तमान में हम सही पुरुषार्थ कर मोक्षमार्ग (सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र) को प्रगट कर सकते हैं। इसप्रकार प्रागभाव हमें आशावादी बनाता है। नया पुरुषार्थ करने की प्रेरणा देता है। प्रवेश : और प्रध्वंसाभाव ? समकित : प्रध्वंसाभाव कहता है कि हमारी वर्तमान पर्याय का भविष्य की पर्याय में अभाव है। यानि कि हमारी वर्तमान पर्याय भविष्य की पर्याय में कुछ भी नहीं कर सकती, यानि कि आज हम कितने भी पामर (अशुद्ध) क्यों न हों लेकिन कल सही पुरुषार्थ करके परमात्मा बन सकते हैं। इसप्रकार प्रध्वंसाभाव हमको पामर से परमात्मा बनने की प्रेरणा देता है। समझ में आया? प्रवेश : बहुत अच्छे से। समकित : तो बताओ बेलन से रोटी बनती है, ऐसा यथार्थ मानने वाले ने कौनसा अभाव नहीं माना? प्रवेश : अन्योन्याभाव, क्योंकि बेलन और रोटी अलग-अलग पुद्गलों की पर्याय हैं। समकित : बहुत बढ़िया ! अब बताओ द्रव्य-कर्मों ने हमको संसार में बाँध कर रखा है ऐसा यथार्थ मानने वाले ने कौनसा अभाव नहीं माना? प्रवेश : अत्यंताभाव, क्योंकि हम जीव द्रव्य हैं और द्रव्य-कर्म पुद्गल द्रव्य हैं। 1.effect 2. help 3.inspiration etc 4.efforts 5.achieve 6.optimistic 7.inspiration 8.bind