Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 295
________________ 288 समकित-प्रवेश, भाग-8 न किया हो और सीता ने रावण की तरफ आँख उठाकर भी न देखा हो। बदनामी के डर से और राजा का कर्तव्य निभाने के लिये श्रीराम ने फिर से गर्भवती सीता को वनवास भेज दिया। प्रवेश : सीता ने कुछ नहीं कहा ? समकित : देवी सीता ने श्रीराम को बस यही कहलवाया कि जिस तरह बदनामी के डर से मुझे छोड़ दिया, उसी तरह बदनामी के डर से सच्चे धर्म को मत छोड़ देना। प्रवेश : फिर? समकित : पापा या पुण्य के उदय स्थाई नहीं रहते। सीता जी के पुण्य का उदय आया और घोर वियावान-वन में भी उनको सहायता मिल गयी। पुण्डरीकपूर के राजा वज्रजंघ सीता को अपनी बहिन बनाकर अपने घर ले गये। उनकी पत्नी ने गर्भवती सीता की खूब देख-भाल की और वहीं देवी सीता ने लव-कुश नाम के दो जुड़वा-पुत्रों को जन्म दिया। वे दोनों भी श्रीराम-लक्ष्मण जैसे शूरवीर हुये। प्रवेश : वे अपने पिता श्रीराम से कभी नहीं मिले ? समकित : एक बार ऐसा संयोग बना कि अनजाने में पिता-पुत्रों के बीच में युद्ध __ हो गया। लेकिन युद्ध के बीच में ही उन्हें आपस में पता चला गया कि हम पिता-पुत्र हैं। तब श्रीराम ने उन्हें गले से लगा लिया। प्रवेश : चलो उन सब के दुःखो का अंत हुआ। समकित : पूर्ण वीतरागी हुये बिना किसी के दुःखो का अंत नहीं हो सकता। प्रवेश : क्यों अब क्या हुआ ? श्रीराम, देवी सीता को वापिस अयोध्या नहीं ले गये? समकित : श्रीराम ने देवी सीता को अयोध्या ले जाने से पहले अग्नि-परीक्षा पार करने की शर्त रख दी।

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