Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 285
________________ 278 समकित-प्रवेश, भाग-8 जैसे रोड पर चलने वाली कार और पटरी' पर चलने वाली ट्रेन दोनों समानांतर तो चलती हैं लेकिन स्वयं अपने-अपने कारण से चलती हैं, एक-दूसरे के कारण नहीं और एक-दूसरे के ट्रेक पर भी नहीं। प्रवेश : अरे वाह ! यह तो अद्भुत है। समकित : अत्यंताभाव को तो हमने आत्मा पर घटा कर देख लिया। अब बताओ अन्योन्याभाव को आत्मा पर कैसे घटाओगे? प्रवेश : नहीं, अन्योन्याभाव को आत्मा पर नहीं घटाया जा सकता क्योंकि अन्योन्याभाव तो दो पुद्गल द्रव्य की वर्तमान पर्यायों के बीच में ही घटता है। समकित : बहुत अच्छा ! मतलब ध्यान से सुन रहे थे। ठीक है तो दो पुद्गल द्रव्य की वर्तमान पर्याय पर इसको घटाकर बताओ? प्रवेश : जैसे छत और पंखें के बीच में अभाव अन्योन्याभाव है। क्योंकि यह अलग-अलग पुद्गलों की पर्यायें हैं। समकित : बहुत बढ़िया ! अब बताओ कि छत और पंखे के बीच में व्याप्य व्यापक संबंध का अभाव होगा या नहीं ? प्रवेश : बिल्कुल होगा। समकित : इनके बीच में व्याप्य-व्यापक संबंध का अभाव होने से इनमें कर्ता-कर्म संबंध का अभाव भी होगा ही। यानि कि छत और पंखा एक-दूसरे का कुछ भी करने वाले नहीं हैं यानि कि छत पंखे को सहारा देने वाली नहीं है। प्रवेश : फिर पंखा किसके सहारे से है ? समकित : अपने खुद के सहारे से। प्रवेश : ऐसा कैसे मुमकिन है ? 1. railway-track 2.parallel 3.wonderful 4.apply 5.ceiling 6.fan 7. support 8.possible

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