Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 284
________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 277 प्रवेश : पर आत्मा तो शरीर में ही रहता है ? समकित : आत्मा और शरीर के बीच एक-क्षेत्र-अवगाह' संबंध है यानि कि वे दोनों एक ही क्षेत्र (स्थान) में रहते हैं लेकिन उनके बीच व्याप्यव्यापक संबंध नहीं है और चूंकि उनके बीच व्याप्य-व्यापक संबंध नहीं है इसलिये कर्ता-कर्म संबंध भी नहीं है यानि कि आत्मा और शरीर एक-दूसरे के हिस्से नहीं है इसलिये वे एक-दूसरे का कुछ भी नहीं कर सकते हैं। प्रवेश : लेकिन हम (आत्मा) हाथ-पैर (शरीर) हिलाते तो हैं ? समकित : हम (आत्मा) हाथ-पैर हिलाने का भाव करते हैं। हाथ-पैर तो स्वयं अपनी (शरीर की) योग्यता से हिलते हैं और जब उनमें हिलने की योग्यता नहीं होती तब नहीं हिलते हैं। जैसे पैरालिटिक (लकवाग्रस्त) व्यक्ति हाथ-पैर हिलाने के कितने भी भाव करे लेकिन हाथ-पैर के हिलने की योग्यता न होने से वे नहीं हिलते। प्रवेश : अरे मैं तो सोचता था कि हम जैसा शरीर को चलाना चाहते हैं वैसा ही शरीर चलता है। समकित : नहीं, बताओ कौन शरीर को सीढ़ियों से गिरना चाहता है ? कोई नहीं चाहता। लेकिन शरीर की गिरने की योग्यता होती है तो गिरता ही है। प्रवेश : ठीक है ! आत्मा', शरीर को हिलाने-चलाने वाला नहीं है पर शरीर तो आत्मा को चलाने वाला है न ? क्योंकि शरीर सीढ़ियों से गिरता है तो आत्मा को भी साथ में गिरना ही पड़ता है ? समकित : नहीं, भले ही आत्मा की इच्छा नहीं है गिरने की, लेकिन आत्मा की क्रियावती शक्ति की गिरने (गति) रूप पर्याय (योग्यता) होने से आत्मा गिरता है और शरीर (पुद्गल) अपनी क्रियावती शक्ति की गिरने रूप पर्याय (योग्यता) होने से गिरता है। दोनों के बीच में मात्र निमित्तनैमित्तिक संबंध है यानि कि दोनों का परिणमन अपनी-अपनी (तत्समय की) योग्यता के अनुसार समानांतर' तो है लेकिन एक-दूसरे के कारण नहीं। 1. common-space residence 2.space 3.part 4.ability/ripeness 5.stairs 6.ability 7.soul 8.body 9.wish 10.transformation 11.parallel

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