Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 281 समकित : अरे वाह ! फलाना व्यक्ति बहुत पापी है उसे कभी भी मोक्ष नहीं हो सकता ऐसा मानने वाले ने कौनसा अभाव नहीं माना ? प्रवेश : ऐसा मानने वाले ने प्रध्वंसाभाव नहीं माना। समकित : उसको मैं बहुत पहले से जानता हूँ, उसका ट्रेक-रिकॉर्ड' बहुत ही खराब रहा है वो, सुधर कभी ही नहीं सकता, ऐसा मानने वाले ने कौनसा अभाव नहीं माना ? प्रवेश : प्राग्भाव। समकित : बहुत अच्छा ! लेकिन एक बात याद रखना जिसतरह बेलन से रोटी बनती है ऐसा बोलना मिथ्यात्व नहीं है, ऐसा यथार्थ मानना मिथ्यात्व है। ऐसा समझकर बोलना तो व्यवहार नय होने से सम्यक ही है। उसी तरह द्रव्य-कमों ने हमको संसार में बाँध रखा है या हमने द्रव्य-कर्मों को बाँध रखा है ऐसा बोलना मिथ्यात्व नहीं है, ऐसा यथार्थ मानना मिथ्यात्व है। प्रवेश : तो फिर किसने हमको संसार में बाँध रखा है और रात-दिन हम किससे बंधते रहते हैं ? समकित : हमारे मोह, राग-द्वेष आदि भाव कर्मों ने ही हमको संसार में बाँध कर रखा है और हम इन भाव कर्मों से ही दिन-रात बँधते रहते हैं व दुःखी होते रहते हैं। द्रव्य-कर्म तो बेचारे जड़ हैं, उनको तो कुछ ज्ञान नहीं है और न ही उनका कोई दोष है। कहा भी है कम बेचारे कौन, भूल मेरी अधिकाई। प्रवेश : ठीक है, फिर ऐसा बोलना भी क्यों कि हमको द्रव्य कर्मों ने बाँध रखा है या हम द्रव्य कर्मों को बाँधते हैं ? समकित : क्योंकि हमारे भाव-कर्म (परिणाम) का हम अनुभव तो कर सकते हैं लेकिन उनको शब्दों में बयान नहीं कर सकते इसलिये जिनका परिणमन' हमारे परिणमन (भाव-कर्म) के समान है, ऐसे द्रव्य-कर्मों के गणित से हम अपने भाव-कर्मों (परिणामों) का माप और कथन (बयान) करते हैं। 1.track-record 2.correct 3.bind 4.fault 5.experience 6.express 7.transformation 8.calculation 9.scale 10.narration