Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 267 और सीता किसी अपेक्षा पुत्री है, किसी अपेक्षा पत्नी है, किसी अपेक्षा माँ है। इसप्रकार सीता को समग्र (संपूर्ण) रूप से जानने वाला सम्यक-अनेकांत यानि कि प्रमाण (सम्यकज्ञान) है। व इससे विपरीत' सीता सर्वथा पुत्री ही है या फिर सर्वथा पत्नी ही है या फिर सर्वथा माँ ही है यह मिथ्या एकांत यानि कि दुर्नय (कुनय) है। और सीता सर्वथा पुत्री भी है, सर्वथा पत्नी भी है व सर्वथा माँ भी है इसप्रकार सीता के समग्र स्वरूप को अनिर्णय-पूर्वक जानने वाला मिथ्या-अनेकांत यानि कि दुष्प्रमाण (मिथ्याज्ञान) है। प्रवेश : ज्ञान का ज्ञेय, श्रद्धा का श्रद्धेय और ध्यान का ध्येय, प्रमाण का विषय संपूर्ण आत्मा न होकर परम शुद्ध निश्चय नय (शुद्धनय) का विषय शुद्धात्मा क्यों है ? समकित : अरे भाई ! परमशुद्ध निश्चय नय, संपूर्ण (परिपूर्ण) आत्मा को ही नित्य आदि धर्म (ध्रुव-स्वभाव) रूप जानता है। लेकिन आत्मा के अनित्य आदि धर्मों (पर्याय-स्वभाव) का अभाव नहीं करता बस उनको प्रयोजनवश गौण कर देता है। इसलिये सम्यक-एकांत है। प्रवेश : क्यों ? समकित : क्योंकि संपूर्ण आत्मा को, अनित्य आदि धर्म (पर्याय-स्वभाव) रूप ज्ञान का ज्ञेये, श्रद्धा का श्रद्धेय और ध्यान का ध्येय बनाने से विकल्प (आकुलता) नहीं मिटता। निर्विकल्पता (निराकुलता) नहीं आती। जबकि संपूर्ण (परिपूर्ण) आत्मा को, नित्यादि धर्म (ध्रुव-स्वभाव) रूप ज्ञान का ज्ञेय, श्रद्धा का श्रद्धेय और ध्यान का ध्येय बानाने से विकल्प (आकुलता) मिट जाता है और निर्वकल्पता (निराकुलता) प्रगट हो जाती है। आकुलता यानि कि दुःख और निराकुलता यानि कि सच्चा सुख और दुःख मिटा के सच्चा सुख पाना ही तो हमारा मुख्य प्रयोजन है। प्रवेश : अरे वाह और स्याद्वाद? समकित : अनेकांत का कथन करने वाली शैली का नाम ही स्याद्वाद है। 1.opposite 2.only 3.entire 4.undeterminingly 5.subject 6.main-purpose 7.narration 8.genre