Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
View full book text
________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 265 समकित : हाँ, यह वस्तु का अनेकांत है। यह गुण-धर्म वस्तु के अंत' (अंश) हैं। इन अंशों से मिलकर ही वस्तु बनी हुई है। प्रवेश : तो क्या वस्तु के अनेकांत के अलावा भी अनेकांत होता है ? समकित : हाँ, वस्तु को जानने वाले ज्ञान का अनेकांत। जैसे वस्तु में गुण-धर्म नाम के अनेक अंश हैं वैसे ही वस्तु को जानने वाले ज्ञान में भी नय नाम के अनेक अंश हैं। जिस प्रकार वस्तु की अंश (गुण-धर्म) रूप अनेकता वस्तु का अनेकांत है, वैसे ही वस्तु को जानने वाले ज्ञान की अंश (नय) रूप अनेकता ज्ञान का अनेकांत है। ज्ञान, अनेक गुण-धर्म रूप वस्तु को सम्पूर्णरूप-से जानता है। इसी सम्यकज्ञान को प्रमाण भी कहते हैं। प्रवेश : सम्यकज्ञान (प्रमाण) तो वस्तु को सम्पूर्णरूप से जानता है, नय किसको जानते हैं ? समकित : सम्यकज्ञान (प्रमाण) वस्तु को सम्पूर्णरूप-से जानता है और नय (ज्ञान का एक अंश) वस्तु के एक अंश (धर्म) को जानता है। प्रवेश : मतलब, ज्ञान के एक-एक नय से वस्तु के एक-एक धर्म जाने जाते हैं? समकित : हाँ, सम्यकज्ञान के एक नय से वस्तु का एक धर्म जाना जाता है, यानि कि पूरी वस्तु को उसी धर्म रूप जाना जाता है। प्रवेश : जैसे? समकित : जैसे सीता में पुत्री, पत्नी व माँ ये तीनों धर्म हैं। जनक की अपेक्षा से सीता पुत्री, राम की अपेक्षा से पत्नी और लव-कुश भी अपेक्षा से माँ है। यह तो हुआ सीता (वस्तु) का अनेकांत। अब सीता को सम्पूर्ण रूप से जानने वाले सम्यकज्ञान (प्रमाण) के अंश नय हैं, जो सीता के एक-एक धर्म को जानेंगे यानि कि पूरी सीता को उस एक-एक धर्म रूप ही जानेंगे। 1.fractions 2.fractions 3.completely