Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 259 जैसे बुखार' का अनुभव तो किया जा सकता है लेकिन शब्दों से उसका बयान नहीं किया जा सकता। इसलिये उसका माप और कथन करने के लिये थर्मोमीटर के पारे-के-गणित का सहारा लिया जाता है। प्रवेश : क्या ठीक वैसे ही जैसे आँख की कमजोरी अनुभव तो की जा सकती है, लेकिन शब्दों से नहीं कही जा सकती। इसलिये उसका माप और कथन करने के लिये चश्मे के नंबर का सहारा लेते हैं ? समकित : हाँ बिलकुल। 2. औपशमिक भावः जीव की अस्थाई शुद्ध-पर्यायों को औपशमिक भाव कहते हैं। जीव की इन अस्थाई शुद्ध पर्यायों का माप और कथन द्रव्य-कर्म के उपशम के माध्यम से किया जाता है। इसलिये जीव की अस्थाई शुद्ध पर्यायों को (निमित्त अपेक्षा) औपशमिक भाव कहते हैं। औपशमिक सम्यकदर्शन व औपशमिक चारित्र जीव की अस्थाई शुद्ध पर्याय होने से औपशमिक भाव कहलाते हैं। प्रवेश : अच्छा अब समझ में आया। तभी चौथे गणस्थान में प्रगट होने वाला प्रथम-उपशम सम्यकत्व पूर्ण निर्दोष होने पर भी अंतर्मुहूर्त में छूट जाता है और क्षायोपशमिक (आंशिक शुद्ध) में बदल जाता है या फिर जीव नीचे के गुणस्थानों में गिर जाता है एवं ग्यारहवें गुणस्थान में औप- शमिक चारित्र पूर्ण निर्मल (शुद्ध) होने पर भी अंतर्मुहूर्त में छूट जाता है और जीव ग्यारहवें गुणस्थान से नीचे गिर जाता है क्योंकि क्षायो- पशमिक भाव पूर्ण शुद्ध तो है लेकिन अस्थाई भी है। समकित : हाँ बिल्कुल सही समझे। 3. क्षायोपशमिक भावः जीव की आंशिक शुद्ध पर्यायों को क्षायोपशमिक भाव कहते हैं। जीव की आंशिक (एकदेश) शुद्ध पर्यायों का माप और कथन द्रव्य-कर्म के क्षयोपशम के माध्यम से किया जाता है इसलिये जीव की आंशिक शुद्ध पर्यायों को (निमित्त अपेक्षा) क्षायोपशमिक भाव कहते हैं। 1.fever 2. express 3.mercury-level 4. weakness 5.unstable 6.suppression 7. completely-flawless 8.unstable 9. partial