Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 263
________________ 256 समकित-प्रवेश, भाग-8 2. निकल परमात्माः निकल का मतलब होता है-शरीर रहित। गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान शरीर रहित होने से निकल परमात्मा हैं। अरे वाह ! इनका स्वरूप समझकर तो बहुत आनंद आया। समकित : यदि ऐसा है तो बताओ कि इस पाठ से क्या सीख मिली ? प्रवेश : यही कि बहिरात्मपना हेय (छोड़ने लायक) है, अंतरात्मपना प्रगट करने के लिये एकदेश (आंशिक') उपादेय (ग्रहण करने लायक) है और परमात्मपना प्रगट करने के लिये सर्वथा (पूर्णरूप-से) उपादेय (ग्रहण करने लायक) है। समकित : और..? प्रवेश : और क्या भाईश्री ? समकित : यह कि, जिसके आश्रय (ज्ञान-श्रद्धान-लीनता) से अंतरात्मपना और परमात्मपना प्रगट होता है, वह शुद्धात्मा आश्रय करने के लिये परम् उपादेय है। प्रवेश : अरे हाँ ! यह तो ज्ञेय, हेय व उपादेय के पाठ में भी पढ़ा था। क्या इसको ऐसा भी कह सकते हो कि पहले से तीसरे गुणस्थान हेय हैं, चौथे से बारहवें गुणस्थान प्रगट करने के लिये एकदेश उपादेय हैं, तेरहवें-चौदहवें गुणस्थान व सिद्ध दशा प्रगट करने के लिये सर्वथा उपादेय है और शुद्धात्मा आश्रय (ज्ञान-श्रद्धान-लीनता) करने के लिये परम् उपादेय है ? समकित : हाँ बिल्कुल सही। प्रवेश : आपने कल कहा था कि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक आदि भावों के बारे में बाद में समझायेंगे ? समकित : आज नहीं कला 1. partial 2.completely 3.supremely

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