Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-8 247 जैसे मान लो कि अधःप्रवृत्तकरण का अंतर्मुहूर्त बीस समय का है। तो कोई मुनिराज अधःप्रवृत्तकरण के पाँचवें समय में है और कोई मुनिराज अधःप्रवृत्तकरण के तीसरे समय में हैं। तो दोनों के परिणाम (विशुद्धि) एक-जैसे भी हो सकते हैं और अलग-अलग भी। प्रवेश : और आठवाँ गुणस्थान ? समकित : 8. अपूर्वकरण गुणस्थानः इस गुणस्थान में और भी विशेष आत्मलीनता' (विशुद्धि) होती है जिसे अपूर्वकरण परिणाम कहते हैं। इसका काल भी अंतर्मुहूर्त है। एक जीव की अपेक्षा, अपूर्वकरण स्थित जीव को भी हर समय अनंतगुणी विशुद्धि बढ़ती जाती है। जैसे मान लो कि अपूर्वकरण का अंतर्मुहूर्त दस समय का है। तो किसी मुनिराज की पहले समय में जो विशुद्धि है, उससे अनंतगुणी विशुद्धि दूसरे समय में होगी। अलग-अलग जीवों की अपेक्षा, आगे-आगे के समय वाले जीवों के परिणाम पीछे-पीछे के समय वाले जीवों के परिणाम से विशेष विशुद्धि वाले (अपूर्व) ही होते हैं और एक ही समय वाले जीवों के परिणाम एक जैसे भी हो सकते हैं और अलग-अलग भी। जैसे मान लो अपूर्वकरण का अंतर्मुहूर्त दस समय का है। कोई मुनिराज अपूर्वकरण के पाँचवें समय में है और कोई मुनिराज तीसरे समय में। तो पाँचवें समय वाले मुनिराज की विशुद्धि तीसरे समय वाले मुनिराज की विशुद्धि से अधिक (विशेष) ही होगी। लेकिन मानलो यदि दो मुनिराज पाँचवें समय में ही हैं तो उनकी विशुद्धि एक जैसी भी हो सकती है और अलग-अलग भी। 9. अनिवृत्तिकरण गुणस्थानः इस गुणस्थान में और भी अधिक आत्मलीनता (विशुद्धि) होती है जिसे अनिवृत्तिकरण परिणाम कहते हैं। अनिवृत्ति का अर्थ होता है-असमान। अनिवृत्तिकरण गुणस्थान का काल भी अंतर्मुहूर्त है। 1. special-self-immersedness 2.period 3.involved 4.purity